K.Sudheer Ranjan

K.Sudheer Ranjan

Sunday, February 16, 2014

नाटक ‘‘चली बराते’’


नाटक ‘‘चली बराते’’
                                   
(नाऊ का प्रवेश )                                                         
नाऊः-सदा भवानी दाहिने, सन्मुख रहें गणेश। चार नहीं.... तीन देव मिलि रक्षा करें ब्रह्मा विष्णु, महेश। अपना पंचन  का हमार प्रणाम। देखी काल दादा रामधनी के लड़िका केर बरात जई। अपना पंचन का चलइ का है, जेखर बारन कटा होई, दाढ़ी न बनी होई उँ थोका पहिले आय जइहीं, ओनठे सब मेर के व्यवस्था हबै, औ देखी हमार निमेदन इया है कि अपना पंचे अपने-अपने घर से खाय पीके आउब, ऐसंे कि लडिका के मन कुछ सकबंधें मा है। अच्छा हम जइथे, हमही अबे बहुत  काम है।(जाते जाते पुनः लौटता है) देखी चलत चलाबत एक बेर फेर से सुन लेई जेखर दाढ़ी न बनी होई, बार न बना होई उँ थोका पहिले आय जइहीं। अच्छा हम चलित हैन, हम नउआ आहेन साथै इया अजायब घर केर नौकरौ। हमही बहुत काम है अपना पंचे मजा लेई।( तभी एक व्यक्ति मंच पर आता है)
गोकुल- नहो बहुत हरबियान है, कृष्ण चले बैकुण्ठ राधा पकरिन बाँह इहाँ तमाखू खाय ला उहाँ तमाखू नाहि।
नाऊ-हम अपना पाँचन का नेउतय आये हैन। रहि जई सुपारी हम देइत है इया लेई (हाँथ में रखता है) गोकुल- (सुपाड़ी काटता है जो सडी निकलती है उसे फेंक देता है) नउआ छत्तीसा खाये आन के पीसा उपर से मांगय हींसा
नाऊ- सरी सुपारी खोटहा दाम बखत परे मा देइहें काम।(सुपारी उठा लेता है)
गोकुल-बरात कबय निकरी
नाऊ- ह लेई इया त नहीं पूंछेन ओऊ नहीं बताइन, होइगा जब निकरी तब, अपना बढिया खाय पी के आय जाब
गोकुल-अच्छा! हाँ हो़ हम सेतुआ घलाय गठियाय के निकरब।
नाऊ- ठीकय आय। आपन हँथा जगन्नथा अरबे दरबे का सेतुआ काम अई।(जाने को करता है) अपना से एक बात बताई देखी कोहू से न कहब बाप पूत के मचा है जंगम जंगा। दुल्हा कहत है हम इया काज न करब
(बुआ का आगमन साथ में एक मोटा लड़का है)
बुआः-बताबा इया अउसरहा घर आय दुआरे मा कोऊ नहीं। दहिजरा हरे खाय खाय मोटान है, खाय क दय दीन जाय त कुरई भर भकोस लेइहीं। उआ कट्टहा कहे रहा कि लारी अड्डा मा मिलि जाब पय आबा नहीं हुरमुदात होई पदलेंहणिन के संगय.... हाय हाय रे..... जिउ त पाकि के खता होइग रे (समान रख कर बैठ जाती है तभी नाउ आता है। बुआ को घूम कर चाारो तरफ से देखता है बसंत सकपकाते हुये माँ के पीछे हो जाता है)
नाऊः- कठिन भूमि कोमल पद गामी, कवन हेतु बन बिचरहूँ स्वामी। सकल सूरत बहुत नीक लगा कहाँ केर आहू?
बुआ- का कहे का कहे न रे, दहिजरा, कट्टहा, मुँहझौंसा, कउरहा, पापी तैं हमहीं नहीं जनते हम अपने मइके आयेन हैन, इहय गाँव मा कइक के नेकुआ फोरे हैन। तैं को आहे को आहे रे तैं बोल बालते काहे नहीं बोल (आगे बढ़ती है। नाउ पीछे हटता है।)
नाऊ- (डर कर, जीभ निकालता है) हम जानि गयेन अपना बड़की दिद्दा आहेन....(डर कर मुर्गा बन जाता है)कसम से दिद्दा हमहीं थोर थोर लागत रहा(उतने मे बुआ उसके ऊपर झोला रख देतीं है)

बुआ-अच्छा! जानत रहे ,चल घरे मा समान पँहुचाउ(नाऊ गिर जाता है गिरे गिरे पाँव की तरफ हाँथ बढ़ाता है) रहि जा दूरिन रहे छुइ ना दिहे
(तभी एक मटकी लिए दुल्हे का पिता आता है जो अत्यंत प्रसन्न है बहन को देख कर)
रामधीनः-अरे दिद्दा आयगयेन..आबा भइने। नरे परतउआ कहाँ है रे आवत जा बुआ आय गईं है कहाँ भितरे घुसे है। ल हो रमेसरा इया लै जा।(मटकी देता है)
नाउः- एही का करी।
रामधीनः- हमरे कपारे मा धय दे।
नाउः- (कान में हाँथ लगाकर) अएँ.........का काहेंन धय देई, पय इया माटी केर आय मूड़े से ढनगी त फूटि जई।
रामधीनः- अरे चिपोंग ले लय जा भितरे धई दे, व का कहत हें ....... अरे एही रंग चांेग के लय न जाबा जात है उआ बरायन, जा धई दे भितरे।
नाउः-जय हो बरायन दाई हमरौ सुधि लिहे (मटकी लेकर चलाता तभी दूल्हा और लच्छा आता है)
लच्छाः- काका पांय लागी। बुआ पाँव परित हैंन तर तैयारी होइ गै काका।
रामधीनः- खुशी रहा दादू। तर तैयारी होय रही है, तोहार होय गय।
लच्छा:-पहिले दुलहा केर तैयारी होय फेर हमार त होइन जई।
(लक्ष्मी की माँ पारबती का आगमन)
पारबती- (बैठ कर आँचल पकड़ तीन बार पैर पड़ती है) दीदी जिउ अब अपना आय गैन हमार जिऊ सुचित्त भा। अपना शहर केर रहवइया हम लोग गँमइहा, अब अपना सब सम्हारी(लक्ष्मी का आगमन)
लक्ष्मीः-बुआ पाँव परित हैंन, न दादा इया ओन्हा ठीक रही न दुआरचार खीतिर
दुल्हाः- तुहिन पंचे जात जा बराते हमही नही जाय का आय।
लच्छाः- बिटियन का नही जाय का आय हैन काका।
लक्ष्मीः-(लक्ष्मी ठुनकते हुए)आँ........ हम जाब कोऊ जाय चाहे न जाय, हम जाब बस (जोर देकर)।
लच्छाः- बढिया है, तैं भर चली जा, तोहार दादा त जाइन का नही कहै, बढिया रही।
लक्ष्मीः- ये लच्छा-कच्छा चुप्पै रहे नही त बजाइन देब फेर।
लच्छाः-आपन मुंह देखे है। तै न जाबे बस।
लक्ष्मीः-  तुम आपन मुंह देखा। बाबू (रूआँसी होकर चिढती हुई) बरजि लेई येखा। (रामधीन उनकी नोक झोक सुनकर मुस्कुुरा रहे थे)
रामधीनः- न परेशान करत जा हमरंे बिटिया का। जा बूटू इंतिजाम कर।
लक्ष्मीः- होएए लइ ले (खुश होकर चिढाते हुए चली जाती है।) (लच्छा दूल्हे से धीमें-धीमें कुछ कहता है,जान पडता है कि मजाक कर रहा है।)
बुआ - अब बिटिया बराते जाय उआ तैयारी जरूरी है। हमही लेय का लारी खाना तक कोऊ नहीं आबा अपने से आ गयन, पानी पिंगल तक कोऊ नहीं पूँछिस।
पारबती-हम त पूँछित हैन, हलबाई लगाय के मिठाई बनबाये हैन रुकी लय आइत हैन(चली जाती है)
लच्छा-(रामधनी की ओर मुखातिब) अच्छा तिलक पीटि लिहन कक्का बरात मजे कहोय चाही।
दूल्हाः-(चिढते हुए) चुप रहु यार हमही इया सब नीक नही लागै।
बुआ- का नीक नहीं लागय
लच्छाः-रामप्रताप का इया सब नीक नहीं लग रहा है। कहत है बियाह जोग बहिनी बइठ ह अउर भई बियाहा जाय रहा हैै। 
रामधीनः-का चाही? जब ऊट पहार के जमरे आबत है तब जानत है आपन औकात। तुम लड़िकबा का जाना। आज के जमाना मा बाप बड़ा ना भैया सबते बड़ा रुपइया, ओहिन केर परबंध किहे हैन। इया बताबा तुम्हार सखा काहै थोबर फुलाये, पेरुआ कस मुँह बनाये है। हम अइत है देखी हमार ओन्हा लत्ता धोबरि गें कि नही? (तभी मुनिया का आगमन होता है, दूल्हा और उसका दोस्त उसे देखकर खुश होते हैं, रामधीन उठकर चल देता है। तभी मुनिया और पारबती कटोरी लिये आती है)
मुनियाः-बुआ पाँव परित हैन, इया धमधूसर को आय (बुआ के लड़के को इंगित कर, बसंत शर्मा जाता है)
पारबतीः- का कहे बिटिया। लेई पानी पी लेई( बुआ से)
मुनियाः- (सकपकाते हुए) कु..कु..कुछू नही काकी, उआ.......
बुआः- पानी कहाँ है
लच्छाः- आए गए छम्म्मक छल्लो।
मुनियाः- दिहेन ता कपार फाटिन जई, तहिन उटपटाँग सिखौते है।
लच्छाः- हम का सिखायेन,  येखे करेजै नही आए।
मुनियाः- (दूल्हे से) तोहरे मुँहे मा दही जमा है का?
बुआः- इनखर लच्छन त देखा
दूल्हाः- खोपडी न चाट, चल भाग इहाँ से। लक्ष्मी.........(लक्ष्मी को आवाज लगाता है)(लक्ष्मी का प्रवेश, मुनिया को देखकर )
लक्ष्मीः- तै इहाँ का करते है, मौका मिला नही कि पहुँचि गए।  चल हमरे मेंहदी लगाए दे।             3
लच्छाः- हमँहू मेंहदी लगाय सकिथे।
लक्ष्मीः- हँा हो तुम्हरे कस को लगाय सकी। मेहरा नही तो, अबय जा आपन काम करा।
पारबतीः- हियन का करते है जा, चढाव के समान सहेज लेत जा। (दोनो सहेलियाँ आपस मंे काना-फूसी करती हैं।)                                                               बुआः- बाप रे थकि ता गयेन। (वहीं खाट पर बैठ जाती है) हम जानिथे तुम पांचे जानबूझिके हमहीं रेंगाये है।
लच्छाः- नही बुआ अउतेन पय काम में फँसि गयेन
पारबतीँः- (हँसती है) दीदी जिउ अपना केर बहुत जाँगर है, तबय ना अपना के भाई तारीफ करत नहीं अघाय।
मुनियाः- लेई बुआ अपना का मींज देई थकि गयेन होइहन ऐसे।(हँसती है)
बुआः- का खीस निपोरते है, अच्छा स्वागत करत गय। (मुनिया कंधा दबाती है) अब का तैं घोंघा चपइहे।
लक्ष्मीः- चल रे चल मेंहदी लगाउब (मुनिया को खींचने लगती है)
बुआः- हाँ जा जा ठेपरा बनाबत जा, ना पानी न पिंगल।
पारबतीः- अच्छा रहि जई हम लई अइथे।
लच्छाः- ए तुम पांचे आपन सिंगार बाद मा किहे बुआ केर ध्यान देत जा नही ता.....
पारबतीः- लेई भइने पानी पी लेई....
बुआः- पानी कहा है?
पारबती:- पहिले कूछु खाई लेई।
लच्छाः- ऐ लच्छी पानी ले आव।
लक्ष्मीः- ऐ रे ऐ कायदे से! हम न लेआउबै।
लच्छाः- लच्छी का लच्छी न कही त का कही लक्ष्मी माता।
लक्ष्मीः- अम्मा देखि लेई, जेइन नही तेइन चिहिडिआवत रहत हें।
पारबतीः- अच्छा पानी लै आव।
लक्ष्मीः- अच्छा का? हम न ले अउब।
बुआः- बाप रे आज काल के छोकरिया कैइसन कतन्नी कस जबान चलौती हैं।
(लक्ष्मी और मुनिया दोनो भुनभुनाते चली जाती है)
(तभी रामधनी का आगमन साथ में नाउ कुछ सामान सिर में उठाए आते हैं)
रामधनीः-दिद्दा आराम कय लेई थकि गय होइहन
नाऊः- (बीच में) इया कहाँ रखी। (कोई ध्यान नही देता)
लच्छाः- बुआः- डिल्ली से आए रहेन है बडी दिक्कत भै।
इया डिल्ली का आय डिलहरा सुने रहेन खेतवन माँ।
बुआः- अरे चिपोंग डिल्ली इतना बडा शहर राजधानी तुम का जाना कूप मंडूक।
लच्छाः- बुआ डिल्ली नही दिल्ली।
नाऊः- इया कहाँ रखी?
रामधनीः- महराज नही आएँ?
बुआः- बडा काम रहा नही आय सकेें। 
नाऊः- (जोर से) इया कहाँ रखी?
रामधनीः- दिद्दी अपना आय गयन अब सब सम्हारीे।
नाऊः- (चिल्लाते हुए) इया कहाँ रखी? (माँ बुआ के सिर की तरफ इशारा करती है नाऊ बढता है, तभी बुआ उसकी तरफ देखती है)
पारबतीः-हमरे कपारे माँ।
नाऊः- आँय
पारबतीः-मरौ तोर अकिल जा भितरे धई दे। कहाँ रखी कहाँ रखी?
रामधनीः- हमरे नाऊ ठाकुर का न बिगड़ा, बड़ा काम काजी है, सब सम्हारे है। अच्छा इया बताबा हमार बास्कट छिपिया दय गा का? देख लेत जा नहीं त का पहिरब। कइसन लगी बिना बास्कट पहिरे समधी के दुआरे ठाढ़ होयमा।
पारबतीः- तुम ता अपने माँ लगे है। लड़िका बियाहै जाइ रहे है पै लागथै कि समधिन का भिरुहाय के पुतऊ के साथै बिदा कराय लय अइहीं।
बुआः- तू काहे झरातु है बिटिया त जाइन रही है तुमहूँ चली जा बराते। (नाऊ का आगमन)
नाऊः- हरदी चाऊर कहाँ है?
पारबतीः-तोहरे मालिक के जेबा माँ जा हाँथ डारि के निकार लिहा। (नाऊ रामधनी की ओर बढता है)
रामधनीः- (नाऊ से) रूकि जा रे, बड़ा दँतनिपोर है। का बाति है तोहार चित्त ठीक नही लागै।
पारबती:- तुम ता अपनेन मा लगै हेै अउ हम पिसरे जइत हैन।
नाऊः- अरे हमही हरदी अउ चाउर चाही।
पारबतीः- खाय खेपडी त लिहे, हियन बहिरे कहाँ धरा होई हरदी अक्षत, अरे हुआँ पटउहाँ मा धरा होई बइआ हरेन से माँग लिहा। (दुल्हे की ओर मुखतिब) न दादू तू काहे मुँह फुलाये है।
दुल्हाः- हमही इया काज बियाह नही करय का आय।
रामधनीः- का कहे काल्हि बरात जाय का है अउ कहत है काज नही करै का आय, मारेन लाठी ता कपार फाटिन जई।
दूल्हाः- मारी लाठी उहय ठीक होई।
बुआः- का दादू इया का कही रहे है जग हँसाई करइहा का(परतउआ की ओर बढ़कर) (हल्ला सुनकर लक्ष्मी और मुनिया भी आ जाती है, तभी नाऊ भी आता है।)
नाऊः- जामा जोरा  लई के छिपिया आबा है सीधा माँगत है।                               रामधनीः- (गुस्से से) हमार बास्कट लय आबा है कि नहीं जा पूँछा न लय आये होय त कोठरी मा बेंडि के मारा।(लडकियाँ हंसती है।)
   
नाऊः- फुरिन फुर बेंड़ि के मारय का है? उआ हमसे देंहगर है, अपनौ चली अपना पकड़ि लेब हम मारय लागब (माँ और लड़कियाँ बहुत हँसतीं है।)        
बुआः- ही ही ही दांत कढती हैं निंचिउ लाज हया नहीं है औ इया नाऊ दंतनिपोर  है। रहि जा हम। देखिथे सब। (रामधनी, बुआ, माँ और पीछे-पीछे नाऊ चले जाते हैं।)
मुनियाः- देखा अबहूँ समय है सब से बताय दीन जाय कि इनखे मन माँ का है।
लच्छाः- एक्कौ के मूडे़ के बार न रही जई।
लक्ष्मीः- जउन होय क है होय जाय हम जईथे न बाबू से बताबै। (जाने को करती है ,मुनिया पकड लेती है)
मुनियाः- ऐ चिबिल्ली रुक।(बसंत आता है)इया धमधूसर महाराज पहुच गें
लक्ष्मीः- तुम लोग नाम काहे बिगाडते है।
लच्छाः- तोहार रूप इया मेर के है ऐसे।
बसंतः- हम कोई मदद कर सकते हैं
लक्ष्मीः- हम न मानब भंडाफोर कई देबै। (नाऊ का प्रवेश)
नाऊः- का फोर रहे है।
सब साथ में:-बीच मा बोलय बाले केर कपार, तोहार खोपडी।
नाऊः- आपन मूड बचाए रहे। (चला जाता है, माँ का आगमन)
पारबतीः- (लच्छा से) दादू अपने सखा का समझाबा, बडी नामूजी होई, सब काज प्रयोजन हंसी खुसी होय का चाही।
लच्छाः- अरे अब हम का समझाई। (नाऊ का आगमन)
नाऊः-झाँपी आय ग है।
दूल्हाः- अम्मा हमहीं इया काज बियाह नही करय का है।
नाऊः-कोऊ नहीं सुनय झाँपी लैय के बसोर आबा है।
पारबतीः- नही दादू अब काल्हि बरात जई आज इया मेर के बतकहाव ठीक नही आय।
नाऊः-अरे कोऊ सुनय काहे नहीं झाँपी आय ग है।
पारबतीः- रहि जा रे। झाँपी-झाँपी, कोऊ कुछू बतात रहै इया बीच माँ घुसि के नाक अड़ाइन देई.....जा झाँपी मा घुसि के बैठि जा औ ढकना दई ले।
नाऊः- अरे उआ चढाव के समान रक्खै का रहा येसे। हम झाँपी मा हम समाबय न करब नही त बइठ जइत, औ बिआह गाइत।(लडकियाँ हँसने लगती हैं)
दूल्हाः- तुमही पाँचन का बडी हंसी आय रही है।
दोनोः- त का रोई। (माँ बडबडाती नाऊ के साथ चली जाती है)

बसंत:- ये झाँपी क्या है
मुनियाः-अंगरेजी न बोल भइया थोड़ा चुप्पे रहा
दूल्हाः- समझि मा नही आवै का कीन जाय।
लच्छाः- चला चली भाग चली।
दूल्हाः- कहाँ? और तुम काहे भगिहे?
लच्छाः- उआ का है कि..............।
लक्ष्मीः- भाई हम नही बताएन।
दूल्हाः- का?
मुनियाः- जइसेन हम तुम वैसे इ पंचे।                                  
दूल्हाः- (तमककर) का बे सारे हमही कानोकान खबर नही आय, रहिजा तोहँई बताइथे। (लच्छा की ओर बढता है, लक्ष्मी और मुनिया पकडती है। लच्छा जमीन पर बैठ जाता है और बसंत घबरा जाता है।)
मुनियाः- मामिला का है?
दूल्हाः- हमारबाप राम रुपिया के लालच मा हमार काज कय रहे हैं जउन हम नही चाही।
लच्छाः- हमरे साथौ इयह बात है हमरौ काज तय है उहै रुपिया केर कारण। अगर तुमही आपत्ति न होय त हम लक्ष्मी से बियाह ....................
मुनियाँः- जउंहर होई जई, पूरा समाज जुरा है।
लक्ष्मीः- अउर का फेर हमही कोऊ गाँव मा फटकै न देइहीं।
 दूल्हाः- सही आय।
बसंत:-मेरी शादी करा दो
मुनिया:- अपना फेर बोलेन
लच्छाः- त फेर कय ले ना काज, प्रपंच रौपे है। देखा हम लोग अगर अंइसन करी त इया दहेज लोभिन का  अच्छा सबक होई।
मुनियाः- गाँव समाज बडी बदनामी होई।
लच्छाः- नही अपने जात बिरादरी मा दहेज सबसे बडी समस्या  है। न बिरादरी के न गोत्र के अइसन कउनो बात नही फेर पहिले त हमार परिवार सहमत रहा। ऊं धन्ना सेठ आय गें खरीदे तो हमरे बापन के मति बदलि गय अउर इया समिस्सा होय गय।
दूल्हाः- सही आय अम्मा एही से तैयार होइ गई रही नही तो मुनिया का चाहत रही, बाबू कहिन कि लक्ष्मी केर कइसन ब्याह करब।
लच्छाः- काका पलटि गें नहीं त खुसी खुसी हमार तुम्हा काज होय जात । हमरौ बापराम मुनिया के खातिर परेशान हैं।
मुनियाः- अरे जब हम लक्ष्मी के लाने कहेन त कहिन कि काहे उहै भर है बेटउना वाला हमहूँ लेब तिलक
लक्ष्मीः- एकठे समिस्सा अउर है। हुअन बरात का ताके रहिहीं अउर बाबू के बड़ी बदनामी होई
मुनिया:- सही आय उआ बिटिय के दुरगत होय जई को करी काज ओसे
दूल्हाः- बड़ी पंचाइत है
बसंतः- मेरी शादी करा दो
लक्ष्मीः- भइया अपना चुप रही(सोचती है) अरे वाह( अचानक खुशी से) इया ठीक रही
मुनियाः- का ठीक रही अउर कइसन खुशी होय गय
लक्ष्मीः- ( बसंत का हाँथ पकड़ कर ) सही भइया अपना करब काज
बसंतः- हाँ हम करब हमारौ शादी नहीं होय रही है
दूल्हाः- बाह अपनौ रिमहीं बोलय लागेन, अब होय जई काज
मुनियाः- हमहूँ का बताबा काहे तुम दुनहूँ भाई बहिनी बड़े खुशी होय जात गय  
लच्छाः- हाँ हम समझि गयन। देखा पूरा इंतिजाम है बरात के। अब उआ बरात जई बसंत भइया के सब के इज्जत बचि जई अउर हमरे पाँचेन के मन माफिक काज होय जई
मुनिया और लक्ष्मीः- अउर धमधूसर दादा के बियाह होय जई ( चिल्लाकर) चली बराते
दूल्हाः- रहि जा रहि जा अबय एक ठे समिस्सा है घर (मामा का आगमन)
मामा- बाह बेटबा बाह छाती फूलि के चैराहा होय गय
सभीः- चैराहा
मामाः- हाँ हो चकलाय गय छाती। खुशी रहत जा तुम पंचे, सबके मान मर्यादा का ध्यान धरत अच्छा निरनय लेत गया दादू जिऊ जुड़ाय गय।
लच्छाः- मामाजी काका का को समझाई उनहीं रुपिया देखाथी।
मामा:- रहि जा हो हम इनखे बाप के सार आहेन सार मतलब तत्व मतलब निचोड़ हम निकरि गयेन त कुछू न बाँचि समझे?
बसंतः- मै समझ गया। दूध से निकली क्रीम, गन्ना से निकला रस और महुआ से....
मामाः-ऐ अब ज्यादा नहीं(नऊआ सब को बता देता है जिससे बुआ रामधनी और पारबती घबड़ाये भागते हुये आते हैं)
बुआः- ये सब क्या हो रहा है बसंत( डाँटते हुये)
बसंतः- सब ठीक हो रहा है
रामधनीः- नहीं भइने इया ठीक नहीं आय। सरऊ तुम अच्छा लड़िकन का सिखाय रहे है।(मामा का हाँथ पकड़ कर हिलाता है)
बसंतः- सब ठीक है मामाजी एहिन में सब के भलाई है। दहेज लेना अउर देब दोनौ अपराध है।

 पात्रः- 1. नाऊ                      2.रामधनी                        3.बुआ                    4.पारबती                         5.दूल्हा                         6.लच्छा               
7.लक्ष्मी                          8.मुनिया                        9.बसंत                
10.गोकुल                        11.मामा

2 comments:

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