K.Sudheer Ranjan

K.Sudheer Ranjan

Sunday, June 12, 2011

Bagheli drama



दुःख होता है, बहुत तकलीफ होती है कटे पेड़, नंगे पहाड़, सूखते नदी नाले,दम घोंटू हवा, मुर्झाती हरियाली देखकर। क्या करें कि पूरा विश्व पुनः हरा भरा हो जाय। क्या अविष्कार करें जो बदल दे आदमी के दिमाग को और वे पर्यावरण को प्यार करें, सहेजने लगें। पानी का मोल जाने।
जंगल कम हो रहे हैं, जनसंख्या बढ़ रही है। परिणाम दस्तक दे रहा है। आज हम वातानुकूलित कमरे में भौतिक सुख संसाधनो (जिनसे पर्यावरण प्रभावित होता है) का उपयोग करते हुये भी चाहते हैं कि हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहे। बार बार दुहराना जरूरी नहीं कि आज हम क्या भुगत रहे हैं और आगे क्या होगा। कोई अवतार नहीं लेगा। अभी भी समय है चेत जायें।
पर्यावरण संरक्षण के लिये जो भी जरूरी हो किया जाय। गाँव एवं ग्रामीण, उन्हे जगाना है, समझाना है। उन्ही की बोली-भाषा में। अभी हमने पर्यावरण संरक्षण की भावना जागृत करने के लिये रिमही बोली (बघेली) में नाटक तैयार किया है। आगे भी कई बोली-भाषा में प्रयास किये जायेंगे। बहुत जरूरी है, सभी लोग जाने कि जंगल न होने से और पानी का संरक्षण न करने से किस तरह की परिस्थितियाँ निर्मित हो सकतीं हैं।
हमें जीना है। हमें स्वच्छ पर्यावरण चाहिये। सबके साथ बुद्धि, बल एवं भावना है। आइये प्रयास तो करें। हम होंगे कामयाब।

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विन्ध्य क्षेत्र का छोटा सा सामान्य गाँव, जहाँ अभी सरलता, सज्जनता बची है। मिटृी धूल के रास्ते हैं। गिने चुने पेड़, कई कुयें पर सूखे हुये। गाँव से काफी दूर एक बहुत गहरा कुआँ है।
गीत गाते हुये कोरस का दृश्य
गीत:- पानी का न अइसन बहाबा सब कोऊ आगे अबा
हमार भाई पानी बचाबा-2
अहुर बहुर के आये बदरा बिन बरसै भागत है बदरा-2
सूखी भुईयाँ पेड़ झुराने पिआसे मरत हैं गोरुआ सारे-2
चिरई चुनूगुन पिआसे मरत हैं-2 नहीं बरसत है पानी
पानी है हमार जिनगानी हमार भाई पानी बचाबा
पानी का अईसन न बहाबा हमार भाई पानी बचाबा ...
जंगल नसाने बिरबा हेराने, कुआँ तलैया नदिया झुराने-2
पेड़ ना काटा मेड़ बनाबा, पानी का भुईं मा सोखाबा-2
सब कोऊ मिल के पेड़ लगाबा इया धरती का स्वर्ग बनाबा
खेत मा जब होई पानी तब होई सुखी प्रानी
हमार भाई पानी बचाबा

(प्रथम)

सुबह हो गई है, धूप तेज होने को है। थकावट उतार कर चिड़ियाँ पुनः व्यस्त हो गईं और उनकी चहचहाने की आवाज नैसर्गिक संगीत उत्साहित कर रहीं हैं। एक छोटा सा गाँव, धूल भरे रास्तों से होता हुआ एक वृद्ध धीरे धीरे रेंगता हुआ चला जा रहा है। एक महिला घर का दुआर ‘बटोरती’ हुई। दरवाजे से 8-10 वर्ष का एक बालक जाँघिया एवं छोटी सी बिना बटन की बुशर्ट पहने हुये आता है ....

नन्हे:-अम्मा..पानी दइ दे .. ऐ अम्मा पानी दे न (रोता है)

तेरसी:- लइ ले रे, हुअन घिनौची मा गगरी है देख ओमा पानी होई,

नन्हे:- नहीं तैं दइ दे

तेरसी:- देखते नहीं हम बटोरित हैन

बालक पानी रखने की जगह (घिनौची) जाता है। धीरे धीरे मटकी झुकाता हुआ अन्त में पूरा औंधा लेने के बाद पानी की कुछ बूंदें गिरती हैं, बालक झुंझलाते हुये कहता है..

नन्हे:- पानी नहीं आय ( कहते ही मटकी गिरकर फूट जाती है। तेरसी की आवाज: का किहे रे)

तेरसी:-(आती है) फोर डारे, हे भगमान (मारती है बच्चा रोने लगता है। वृद्ध की आवाज आती है, कोउ है घरे मा..ओह)

तेरसी:-हाँ...को आय अइत हैन (बाहर आती है तभी वृद्ध सिर की अंगौछी डेहरी के बगल में ऊँचे चबूतरे जैसे स्थान पर रख उसी पर बैठ जाता है) अई बइठी बाबा (खाट बिछाती है जो वहीं पर खड़ी की हुई थी)

बब्बा:- होइगा बिटिया.. बइठ त हैन ( उठता है और खाट पर बैठ जाता है, तेरसी भीतर कम्बल लेने चली जाती है )

तेरसी:- उठी येही बिछाय देई, निकठहरे काहे बइठ हैन।

बब्बा:- होइगा..अपना काहे परेशान होइत हैन (उठता है)

तेरसी:- बाबा अपना से हम बहुत का छोट हैन, हमहीं अपना न कही (कम्बल बिछाती है) आराम से बइठी। कहाँ से अबाइ भय है?

बब्बा:- पासै के गाँव से..बहुत पिआसे हैन बूटू पानी पिआय देया।

तेरसी:- पानी ! (शर्म व संकोच) अब का बताई, हमरे हिंया पानिन नहीं आय।

बब्बा:- पानी नहीं आय ! व है तो कुइयाँ

तेरसी:- हँई तो कइकठे कुइयाँ पर सबै सुखान हँई। चार कोस हींठे त पानी पाबै, फेर आज पानिन के कारन नन्हे के सबेरेन सबेरे कुटम्मस होय गय अउर गगरिउ फूटि गय

बब्बा:- होइगा, त कउनौ बात नहीं।(चिन्तित सा उठकर चलता है) कउनौ दुआरे त पानी मिलबै करीतेरसी:- (बच्चे से) जा दादू फुइया का बताय दे पानी लेय चले का है, सबका जोर लें (बच्चा जो बाबा के आने से चुप था पुनः रोने लगता है) जा बेटबा (पुचकारते हुये) एक्कौ पानी नहीं आय

(वृद्ध धीरे धीरे चलता हुआ दूसरे दरवाजे पर जा कर आवाज लगाताहै।)
बब्बा:- का एक लोटबा पानी पिये का मिल जई, पिआसन मरित हैन
अन्दर से आवाज आती है ...देखा हो को आय , दुआरे ठाड़ पानी माँगत है। एक व्यक्ति लोटा में पानी और एक कटोरी जिसमें गुड़ है लिये बाहर आता है।
अधेढ़:- अइ भितरे कढ़ि अइ (बरामदे में आमंत्रित करता है जहाँ खाट बिछी है) बइठी हम पानी लय अइत हैन। भला पानी काहे न मिली।
बब्बा:- ( पानी का लोटा ले लेता है, कटोरी से गुड़ की डली उठा मँुह में उालता है) जय हो अपना केर हमार परान तो राखि लिहेन, बहुत पिआसे रहेन। कइयेक कुँअन मा देखेन, पानी नहीं पायेन येसे अपना का तकलीफ दिहेन। (पानी पीता है तभी तेरसी का आगमन हाँथ में लोटा लिये हुये है)
तेरसी:- कोऊ पानी पिये का माँगे त कष्ट नहीं होय कष्ट होत है नाही करै ते
अधेड़:- कइसन तेरसी, बड़े बिहन्ने लोटबा लइके का होइगा ?
तेरसी:- अरे जीजा पानी चुकिगा है, गगिरिउ फूटि गय औ नन्हे जिऊ का लगाये है। का बहिनिउ चलहीं पानी लेय?
अधेड़:- अहाँ न जइहीं, बिहन्नेन लय आबा ग है। भितरे कढ़ि जा बात कइ ले। (वृद्ध बचे पानी से चेहरा धोता है) अरे!..होइगा (पानी के अपव्यय से क्ष्ुाब्ध है) कहाँ रहाइस ही, कइसन पधारेन? धय देई (बर्तन रखने की जगह बताता है। वृद्ध लोटा रख आ कर खाट पर बैठ जाता है। चेहरे पर संतुष्टी का भाव है)
बब्बा:-( चेहरा पोंछते हुये) अपना के आगू के गाँव पार गोरगाँव मा हमार समधिआउर है। समधी लकबा मारिगें हैं उनहिन का देखै जइत लाग हैन।
अधेड़:- अरे अब घाम होत लाग है, जेउनार कय लेई ठण्डे ठण्डे कढ़ि जाबै।
बब्बा:- ध्न्नि हैन दादू , अपना ध्न्नि हैन। अब हम बूढ़न का कोऊ नहीं पूँछै, न परेशान होई हमहीं कढ़ि जाय देई (उठने का उपक्रम करता है तभी भीतर से तेरसी आ जाती है)
तेरसी:-हाँ जीजा इया लेई, गंदगी फैलाबै के लाने (तम्बाखू की थैली देती है) लेई

अधेड़:- का तेरसी, का लेई, बहुत हरबरियाने है। आबा, हमरौ दरबार होय जाय (अचानक वृद्ध को देखता है झेंप जाता है) बोली मजाक के रिस्ता है हमार।

तेरसी:- गारी का सधाने है का जीजा (हँसती है) नन्हे पिआसा है औ पानिउ लय आबै का है नहीं त बताइत। फेर अइत हैन ठीक है (चली जाती है)
बब्बा:- न दादू एक बात पूँछी , नागा त न मानब।
अधेड़:- अरे नागा काहे मानब , पूँछी न (सुपाड़ी काटता है)
बब्बा:- हिंयन येतने कुआँ, तलाब हैं तबौ पानी केर दुर्घट है।
अधेड़:- हाँ हैं तो। पय सब जे कबौ जेठ बैइसाख मा गड़बड़ात रहें ओ अब कातिक तक मा जै राम जी करत सुखाय जात हैं। अब गामै मा एकौ कुआँ ईंदारा नहीं जेमा पानी होय। गाँव के बहिरे एक बगइचा है बहुत पुरान कम ते कम डेढ़ कोस मा, ओमा पानी रहत है। इया गाँव के उहै ते निस्तार होत है। ह लेई इया हाल है हमरे गाँव के।
बब्बा:- अइसन बाति आय उहै हम कही कि...(श्यामलाल आता हुआ दिखाई देता है)
अधेड़:- का हो नेताजी काहाँ केर दउड़ा है ? 
श्यामलाल:- य पानी केर पंचाइत, रोज उठ बिहन्ने झंझट। सहर जइत हैन, कलेक्टर से मिलय , गाँव में पानी नहीं है डाला से या टेक्टर से पानी पहुँचाया जाय।
अधेड़:- हाँ हो तुम्हिन त है हियन बेबस्था करय बाले, जा देखा का कहत है कलक्टर। (श्यामलाल चला जाता है) इनखर येतनै काम है। (इसी समय हीरालाल सायकल पर रस्सी लिये वहाँ से निकलता है) ए हीरालाल का हो रसरी कमत है का ?
हीरालाल:- (रुककर एक पैर नीचे रख, मुड़ कर) थोड़कौ अबेर होय जाय त कम पड़ै लागथी, येसे सोचेन कि लय चली काहे कि....
अधेड़:- अच्छा-अच्छा ठीक है होय आबा
बब्बा:- सब काहे मा बिल्लियान हैं ?
अधेड़:-पानी लेय जाय रहे हैं।
बब्बा:-त, कउन बड़ी बात है।
अधेड़:-हियन के लाने बड़िन आय। एक तो दूरी बहुत है दूसरे पानी बहुत गहिरे है। अइसन नहोय कि वहाँ पँहुच के कउनो दिक्कत होय जाय। का कही राम, (दुःख से उसांस भरकर) अब हमार गाँव पानीदार नहीं रहा निपनिया होयगा है।
बब्बा:-अइसन काहे भा? हम अपना के गाँव होत लड़िकइन ते आबा जाही करत रहे
आयन हैन। तबै लोटा डोर लय के चलत रहेन। हर गाँव मा कुआँ लबलबान रहत रहें,
अधेड़:- अइसन तबाही पहिले से होत त का हियन गाँव बसत। जना पुरिखा होसियार रहें जउन पुरान बगइचा मा कुआँ खोदाय दिहिन तै। उहै आज सबका जियाये है। न तो पहिले कस जाड़ होथै औ न पहिले कस बरसतै आय।
बब्बा:- सोची भला अइसन काहे भा, पानी काहे हेरान जात है ?
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(व्दितीय)
रास्ते में लोग चले जा रहे हैं। महावीर और बुद्धा मोटी लाठी में रस्सी का बण्डल काँधे पर लादे हैे। हीरालाल सायकल पर रस्सी रखे हुये है। फूलमती, तेरसी, सेमकली रानी रतिया सभी दो-दो मटकी रखे हुये हैं। बातकही हो रही है।
फूलमती:- न रे रतिया एक ठे गगरी अऊ लइ लेते
रतिया:- ओइसै थके जइथैन औ दुइ ठे रखे त हैन।
फूलमती:- तोरे हियाँ त पानी चुकिगा रहा, का चार बेर अइहे-जइहे।
रतिया:- कम कम पियब औ दुई जने त हैंन, होय जइ।
बुद्धा:- सही आय जियादा न पियत जया नहीं त सब पियक्कड़ कहिहीं (हँसता है साथ सब हँसने लगते हैं। श्रम को भुलाने के लिये हँसी मजाक का सहारा अच्छा होता है)
सेमकली:- इया पानी का बेढ़ सकाय लागत है जिउ न रहि जई। बाबू जनतैं त काजय न करउतें हिंयन।
महावीर:- गाँव के कुआँ तलाबन मा बेढ़ सकाय गा है तैं काहे अपजस लेते है।
तेरसी:- अब कहाँ काज होत है, उआ सेमलाल बइठय नहीं आय।
सेमकली:- काहे भउजी?
तेरसी:- अरे उआ गाँव के बिटिया से खूबै नैन मटक्का भा, बिटिया के घर बाले काजौ का तैयार होय गा रहें। हियन के दिक्कत जानिन त नाहीं कय दिहिन के पानी बिगुर मर जई बिटिया हमार।
सेमकली:- ठीकय भा
फूलमती:- काहे रे, सेमलाल से तोर कउनौ जुगाड़ है का, खुसी काहे भय तोही?
सेमकली:- का भउजी तुम्हऊ..अरे हम उआ बिटिया के लाने कहे हैन ओकर जिउ बाँच।
सजीवन:- येहिन से सेमलाल उठबिहन्नेन सहर भागा जात है के सरकार पानी केर परबंध करे औ ओकर काज होय जाय।
तेरसी:- बिटिया त चाहत है कि काज होय जाय निबाह कय लेब, पय बाप महतारी कहत हैं कि पहिले पानी...।
रतिया:- काहे अपनेन गाँव भरे मा इया दिक्कत है?
फूलमती:- अरे नहीं रे (दुःख से) अब त सबै जागा पानी के दिक्कत है पय उनके हियाँ निस्तारी कुआँ कुछ नियरे है।
सेमकली:- हाँ ईं बताउत रहें इनके ननिऔरे मा परसाल बहुत दिक्कत भय तै। कहूँ बाहर ते डालन मा पानी आबत रहा। हीरालाल:- अब बरखै ठीक से नहीं होय न भुइयें जिलकै।
बुद्धा:- धरतिन माता के पिआस नहीं बुझति आय हमहीं कहाँ ते मिलै पानी। (सब अपनी कें पें लगाये अपनी दुरदशा पर रोते हुये कुयें तक आ पहुँचे। थके चेहरे, परेशानी से लदे हुय,े सामान रखते हैं। कुआँ वीरान जगह बगीचे में है)
महावीर:- जिउ त निकर गा भाई, येसे अच्छा होत कि बरदा नाँध के गाड़ी लय अइत।
सजीवन:- हाँ भाई ठीक कहे पहिले नहीं सोचेन पय आगे से अइसै करब। का कहूँ से डामर बाले डराम न मिल जइहीं ओही में पानी भर
सेमकली:- सही आय हमरौ पंचन के जिउ बचै, बरदा सेतै पड़े हैं।
हीरालाल:- चल पहिले गघरी भर, फेर डराम भरे। (बालटी में रस्सी बाँधता है और कुयें में डालता है। बहुत सारी रस्सी का बण्डल धीरे धीरे कुयें में जाता है, फिर पानी खींचता है।)
बुद्धा:- सही इया तो बहुत दंतनिपोर है। आराम से, येतना महँग पानी छलकि न जई।
हीरालाल:-( पानी खींचते हुये) गोरुअन केर भाई बड़ी दुरदसा है, छोटुआ सकारेन
ए सजीवन आउ मदद कर भाई।
सजीवन:-(अपना हाँथ दिखाता है, हाँथ छिल गया है) देख भाई हम काल खीचे रहेन। एक ठे
हीरालाल:-
तेरसी:-( बुद्धा आगे बढ़ता है तो रोकती है) तुम पंचे बइठत जा हमहिन पाँचे खींच लेबै। येही देखा नाम महाबीर है औ एक बलटुइया मा आँखी कढ़ि आबथी।
महावीर:- (हँसते हुये आता है) अरे भउजी कहि ले पय थोरी मुसकी मार के कह तो हम इया कुअउना का उठाय के गाँव मा धरि देई।
सजीवन:- अरे ये नइना मटकाय दें तो अच्छे अच्छे पानी भरय लाधैं।
फूलमती:- चला ठिठोली रहे देया, य नहीं कि गाँव के कंुइयन का झार लेंय।
हीरालाल:- कइयक बेरि त झारेन अब एतनी गहिर औ सांकर होय गईं हैं के घुसतै नहीं बनै।
( सब सामान समेटने लगते हैं। इस तरह लदे जा रहे हैं कि मानो मनुष शरीर नहीं मशीन हो)
रतिया:- इया दिक्कत इया झंझट दूर करय के उपाय सोचा नहीं त हम सब छाँड़-छूँड़ भागि जाबै। (गुस्से और खीज भरे शब्दों में दुःख ज्यादा है)
हीरालाल:- तैं काहे भगिहे, चला सब इया गाँव छोंड़ उहाँ चली जहाँ पानी मिलै।
बुद्धा:- ठीक कहे भाई, खेती किसानी कुछू हइये नहीं आय, बरखा होतै नहीं, का करब हिंयन रहिके, उहाँ चली जहाँ पानी मिलै।
सजीवन:- चला सब कोऊ गंगा किनारे चली उआ कबौ न सुखई।
महावीर:- गंगा किनारे, तुम्हार पुरिखा का पट्टा कराये हैं जौन गंगा किनारे जइहा। एक बेरी हम फूल सेराबै गयन तै बड़ी भीड़, समाबै न करब।
सजीवन:- सहर के हाल न पूँछा। पर साल हम भुगति चुके हैंन। सतना गयन तै कि मजूरी मिली कम से कम पानी तो मिली पय भाई इहौं से जियादा खराब हालत है हुआँ। डाला टेकटर
से पानी
बुद्धा:- सरकारौ केर फदीहत है। पानी मिलै नहीं त का करैं ( इसी समय श्यामलाल सामने से आता हुआ दिखाई देता है) नेताजी पधार रहे हैं।
हीरालाल:- का भाई सहर जात रहे हरबिन लउटि आये।
श्यामलाल:- का करी भाई लारी निकरि गय तै (चला जाता है)
बुद्धा:- नेतागिरी के घोड़ मा चढ़ा है, कुछू करय धरय नहीं बस सी ओ कलक्टर बतात है।
हीरालाल:- नहीं अपने कस लिखा पढ़ी करत रहत है।
सजीवन:- लिखा पढ़ी से का पानी बरसी।
महावीर:- चल बढ़े चल भाई, नहीं तो जेउनार बियारी साथै होई।तृतीय)
खड़ी दोपहर है। हीरालाल, महावीर, रतिया, फूलमती अधेड़ के घर के सामने से गुजरते हैं। बहुत थके हुये हैं। औरतें एक मटकी सिर पर और एक बगल में, कमर पर रखे हुये हैं हीरालाल सायकल पर रस्सी एवं दो डब्बे लटकाये है। महावीर काँधे पर रस्सी का बण्डल और हाँथ में पानी से भरी बाल्टी लटकाये हुये हैं।
अधेड़:- (पुकारते हुये) आबा सुस्ताय लेया।
हीरालाल:- अइत हैन दद्दी, सब रखि अई फेर बैइठब। (सब चले जाते हैं)
बब्बा:- हिंयन पानी के बहुतै तकलीफ है दादू पय ‘सब दिन होय न एक समान’। सब दिन लिहेन अब हमहीं चाही के अपने दाता के कुछ तो सेवा करी।
अधेड़:- पानी निता जौन कही , ओइसय पूजा, यज्ञ, मानस इहाँ तक बली घलाय दिहेन, अपने कई से सबै कराय चुकेन। बारिसै नहीं होय, पय बताई का कीन जाय।
बब्बा:-(कुछ सोचता हुआ उठता है, बरामदे से निकल बाहर थूक कर वापस लौट बैठ जाता है) महतारी के नाई हम सबका पालिस औ हम हुसियार का किहेन, ओहिन का निपोरय लागेन। अपनेन धरती अपने महतारी के लाने का कुछू करेन..आँय।
(तेरसी का आगमन। हाँथ में एक छोटी सी थाली लिये है, जो
पागल:- (चुनौती सा देता हुआ) सब मरोगे। सबके बुद्धी का लकवा मारिगा है, सब मरोगे (हँसता है) ये देखा सब झुर्रै झर्र झुर्रे झूर (आसमान, धरती निहारते बाँह फैलाता है और दुखी हो कर जमीन पर बैठ जाता है। तेरसी का प्रवेश )
तेरसी:-आय गा झुर्रे झूर इहौ..अच्छा चली कुल्ला कय लेई। जेउनार के ठौर लगिगा है।
अधेड़:- तुम्हरे हियाँ कोउ बनबइया है का, काहे से कि तुम तो पानी का गय रहे फेर
तेरसी:- बहिनी दार डारिन तय, कहिन के आय जया, अपना के माथे नहीं। का कबहूँ बोलायेन हाँ नही ंतो
अधेड़:- अरे बोलाय त लेई पय कोदई केरि डेर लागथी। अगर तुम सोचिन लिहे है त तो फेर ठीक है, सबसे निपट लेई मनई।
तेरसी:- मूड़े में एकौ बार न बचिहें समझे, खाय के जूना गारी ते पेट भरे का है का, चली उठी।
(सब हँसते हैं। तनाव के बादल छंट जाते हैं। वृद्ध भी मुस्कुराते हुये उठ खड़ा होता है तीनो व्यक्ति भीतर चले जाते हैं। पागल अपने स्थान पर खड़ा हो जाता है।)
पागल:- उठो खड़े हो जाओ। तैयार हो जाओ (जैसे किसी को बलपूर्वक आदेश दे रहा हो) तैयार होइजा, काटि डारा जंगलन का, फोरि के मेड़ तलाबन का खेत बनाय डारा। सब होइगें हैं हुसियार, निपोर देया वायुमण्डल, नसाय देया हरियाली, पूरे पृथ्वी मा टिड़ी के नाई मनइन मनई छा जायें। (हिकारत से) पानी नहीं मिलै, खेती नहीं होय..सारे सब..झूर्रै झूर। चेत ले (अंगुली से दर्शकों की तरफ इशारा) नहीं तो मरेगा। सुना, गुना औ समझि लेत जा।
(हीरालाल, बुद्धा और सजीवन आते हैं)
महावीर:- चुप रह रे, इया कहाँ से आयगा (हिकारत से) भाग ओं कई।
हीरालाल:- रहे दे भाई रहे दे (पागल से) चुप चाप बइठ जा, हल्ला न करे , ठीक है।
(भीतर से अधेड़ एवं वृद्ध दाँत खुरचते हुये बाहर आतें हैं)
बब्बा:- घरे से कलेबा कइ के निकरे रहेन। खूब पायेन। इंदरहर औ रिकमच त बहुतै बढ़िया रहें, खूब खाय लिहेन (संतुष्टि)
अधेड़:- आराम कय लेई।
बब्बा:- दादू धन्नि हैंन अपना, नहीं अब कढ़ि जाय देई, अबेर होथी।
हीरालाल:-होइगा अब आज रुकी, बड़े सकारे हम पहुँचाय देबै।
पागल:- सब झुर्रै झूर, रोका रोका नहीं त सब मरिहा (चिल्लाकर बोलने से सजीवन चैंक कर उचक पड़ता है। पहले डर फिर झेंप और अब गुस्से से)
सजीवन:- सार डेरबाय दिहिस तै, देई एक चैथेरा, चुप्प चाप बैइठ नहीं त भाग येनठें से।
बब्बा:- न गरियाबा दादू आफत के मारा है बपुरा...
अधेड़:- का अपना येही जानित हैन अपने आस पास के तो न होय
बब्बा:- हाँ दादू इया बड़ा भला मनई रहा। पढ़ा लिखा है, घर दुआर सब रहा पय सब झोंकि दिहिस पृथबी बचाबै के लाने। (पागल दुःखी हो जाता है। सोचनीय आँसू भरा चेहरा)
(फ्लैश बैक)
एक युवक दौड़ता हुआ जा रहा है। कई व्यक्ति पेंड़ काट रहे हैं। कटे पेंड़ों के ठूँठ, गिरे कटे पेंड़ पड़े हैं। युवक लकड़हारो के बीच पहुँच जाता है, उनमें बात-चीत हो रही है कि अचानक धक्का-मुक्की शुरू हो कर मारपीट होने लगती है। युवक लहुलुहान पड़ा है, बंदर चीख रहें हैं मानो इस अमानवीय हरकत पर अपना विरोध प्रगट कर रहे हैं। चिड़ियाँ निबल असहाय चिचियाती हुई उड़ रही हैं। (दृश्य धुंधला होने लगता है और दूसरा दृश्य सामने आता है) हवेली के बरामदे में एक धनी रोबदार व्यक्ति तख्त पर बैठा है और आस पास कुर्सियों में दो एक लोग और बैठे हैं, कुछ लकड़हारे , मजदूर खड़े हैं।
युवक:- अपना हजूर इया का कराय रहे हैंन। पहिले जंगल कटायेन औ अब तलाबन का नसाय रहे हैंन, पाप होई।
जमींदार:- कउन तलाब..अच्छा उआ बलसागर, ओही त हम बेंचि दिहे हैन उआ हमार कहाँ।
युवक:- नहीं ओही न बेंची, देखतै हैंन कि पानी के केतनी समस्या है। तलाब के मेड़न का
ओधसाय सब बराबर कैय देंहीं पानी रोके के एक इहौ साधन हेराय जई...
जमींदार:- हमरे थोड़ी दिक्कत रही..
युवकः- अपना का कौन दिक्कत, पैइसा का करब जब पानी होई त पैइसा...
जमींदार:- थोड़ा पढ़ि का लिहे कानून बतउते है हमरे पट्टे के आय हम चाहे जउन करी। एक ठे तलाब न रहे से का भुईं झुराय जई।
युवक:- बहुत फर्क पड़ि जात है। एक एक कर सब नसाय जइहीं गोरुआ, मनई, पंछी सबै का
बहुत दिक्कत होय जई। तलाब, बंधबा येनमें बारिष के पानी रुकत है, भुईं मा सोखरत है भूमी के जल स्तर बढ़त है।
जमींदार:- तोर स्तर खूब बढ़ि रहा है सम्हरि जा। (नाराजगी से)
युवक:- अपना बड़े हैन, समझदार हैंन। जंगल कटाय के खेत बनाइत हैंन, का करब जब पानिन न बरसी। जंगल नहीं पानी नहीं। पूरे पर्यावरण के संतुलन बिगड़ि जई।
जमींदारः-(कुछ चिंतित सा, सोचनीय अवस्था) अच्छा ठीक है तुम अब जा हिंयन से। (जमींदार उठ कर चला जाता है। पास बैठे हुये दरबारी को क्रोध आता है)
1 दरबारी:- भाग बे सारे, बहुत बताय लिहे, बहुत समझाय दिहे अब निकरिन जा इहाँ से।
2 दरबारी:- येहिन का समझाय देत जा कि समझाबै लाइक न रहि जाय। (मक्कारी से ) सब जुगाड़ नसबाय देई का (धीरे से पास बैठे पहले दरबारी से कहता है। कई लोग मिलकर बहुत मारते हैं। युवक अधमरा हो जाता है जिसे दो तीन लोग मिलकर उठा ले जाने लगते है। दृश्य धुंधला होते होते पूर्व स्थिती में आ जाता है। सभी वे लोग जो उसे पागल, गंदा समझ रहे थे दुःख व दया से पागल की तरफ देखने लगते हैं। औरतें चि.चि.चि. की ध्वनि करने लगतीं हैं तो पागल उन्हे घूरने लगता है। श्यामलाल का आगमन)
पागल:-चि चि चि..करतीं हैं (आवेश से) अरे दुःख मनाओ अपने आने वाले कल के लिये। हम तो पगलय हैंन तुम त समझिदार है, बचाय लेया अपने बंस का औ इया पृथबी का त जानी के तुम पाँचै अकिलमान है। बड़े हुसियार, सब झुर्रै झूर।
श्यामलाल:- अब समझि में आबा के इया का चाहत है।
सजीवन:- जना पगलय के समझाये से समझि में आबा, ओइसय इहौ पगलाय बाला है। काज नहीं होय त डाला मोटर से पानी लाबै के चक्कर मा पड़ा है, काज त होय जाये।
(सब हँसते हैं, श्यामलाल भुनभुनाता है।)
बब्बा:- ना बेटबा हँसि के ना टारा, इया ठीकै कहत है।
श्यामलाल:- सजीबन तैं हमरै पीछे काहे पड़े है।(कुछ नाराजगी से)
सजीवन:- त कहाँ परी बताबा। (चिढ़ाता है)
श्यामलालः- मुरखै है, हम अबहूँ कहित हैन किसब कोऊ हड़ताल करी, ज्ञापन देई, सरकार चाहे जहाँ से पानी लाबै।
सजीवन:- हड़ताल करै से का पानी बरसै लागी औ ज्ञापन दे से का झल्ल से पानी भर जई औउर सबसे बड़ी बात, हाँ तोर काज होय जई। (हँसता है और सब हँस देते हैं।)
श्यामलाल:-(आवेश में,उठकर सजीवन का गला पकड़ लेता है दोनो लड़ने लगते हैं) रहिजा बु... के तोही तो..
अधेड़:- ऐ रुका रुका लड़त न जा। सजीबन तुम चुप्पचाप बैइठा। पानी के समिस्सा आजहैइयै है, आगेउ परेशानी बढ़बै करी येसे ध्यान दई के सुना। ठीक है अब कें पें न करत जया। (सब शान्त हो कर बैठ जाते हैं)
बब्बा:- सब जानत हैं कि इया दिक्कत धीरे धीरे सबै जागा होय रही है।
सम्मलित स्वर:-हाँ हाँ य तो है।
पागल:- काहे घ् सब झुर्रै झूर। ( सब चैंक कर पागल की तरफ देखते हैं, क्योंकि वह खुशी से चिल्लाकर बोला। सन्नाटा)...
श्यामलाल:- सरकार ध्यान नहीं देय, सरपंच का चाही कि बेबस्था करै
सजीवन:- दादा भाई तोरे हाँथ जोरित हैंन, गोड़ कहाँ है तुम्हार, तुम चुप रहा। भगमान नाराज हैं, नहीं तो इया दुरदसा होत..(सब की तरफ दैखता है) हैं के नहीं।
बब्बा:- न..न.. हम, अपना सबै जिम्मेदार हैंन।
अधेड़:- येतना तो समझि में आबत है के अब पहिले कस पानी नहीं बरसै, उआ मेर चैमासे सामन भादौ केर झरियार नहीं होय। कहै जात है कि ‘बिना मघा के बरसे भुईं औ महतारी के परसे बेटबा नहीं अघाय’।
बब्बा:- देखी दादू , हम सब लोग इया धरती माता से अब तक खूब लिहेन पय दिहेन का। इया मनुस बढ़त गा। काटि काटि जंगल पहार सब जागा हम काबिज होय गैन अब भुईं कम परै लाघी त हबा मा कबजा करै केर तैयारी है, इया नहीं कि जनसंख्या सम्हार लीन जाय। पय नहीं लड़ै लागेन दऊ से..हाँ इया सब जेही पढ़े लिखे प्रकृति कहत हैं इहै भगमान आय येहिन से हमार जीबन है औ येहिन का हम नसाय रहे हैन। सजीबन ठीकै कहत है, भगमान नाराज काहे न होंय।
सजीवन:- मुर्गा बोकरा चढ़येन, मानस, यज्ञ सब करायेन। पूजा करतै रहित हैन।
(यह बताने के लिये प्रकृति विनाश की भरपाई की है। पर्यावरण संरक्षण का प्रयास किया है)
बब्बा:- लाउड स्पीकर लगाय रात दिन हल्ला मचाय के, मुर्गा बोकरा कटाय से भगमान औ धरती के पूजा नहीं होय, जेमा सबके कल्यान हो उआ काम पूजा आय।
पागल:- बुढ़ऊ डोकरा जिन्दाबाद (सब की तरफ खुश हो कर देखता है कोई कुछ नहीं बोलता) जिन्दाबाद जिन्दाबाद।
हीरालाल:- इया कइसन करत है
श्याम:- समिस्या पानी के है अउर इन सब से का मतलब।
अधेड़:- हमरे समझि मा आबत है, आगे तो सुनत जा।
बब्बा:- हाँ.. त का कहत रहेन (सोचता है) देखी दोस हमार है। पानी निता पहले बादलन का समेटा जाय। भागीरथी बनी, बादलन के एक एक बूंद समेट लेई, सहेज लेई।
तेरसी:- पानी के बूंद बादल बदरी से? (सब लोग खुसुर पुसुर करने लगतें है)
हीरालाल:- (डाँटते हुए) ऐ लड़िकौ चुप्पे रहा, भौजी थोड़ा सुनत जा, कैइसन का करै का
है खुलासा बताई।
अधेड़ः- सबते पहिले पानी इस्तेमाल करै केर तरीका सुधारा जाय।
बब्बा:- हाँ, फेर घर गाँव मा हरियाली लाबा। (सभी एक साथ:- हरियाली)
बब्बा:- हमरे लड़कइन केर सुधि है, हियन डोंगरी मा बिकट जंगल रहा मेंड़उरे मा, खरिहानन मा, आमा, नीम, पीपर जामुन, बाँस रहें, सब रसे रसे हेराय गें।
अधेड़:- हाँ कुछ कुछ हमहूँ का सुधि है, खूब बिरबा रहें पय अब होइगा गुलमेंहदी औ गाजरघास। न छिउला, न महुआ, चार तो बिलाय गा। अंवरा आमा इक्का दुक्का हैं बस।
बब्बा:- जब हरियाली रही तब न येतनी बेरामी रही औ कुआँ तलाब लबलबान रहत रहें। सुद्ध हबा, फल फूल..। बड़ा अच्छा रहा। (खो सा जाता है) अउ हम का किहेन..नुकसान बस।
पागल:- हवा शुद्ध हवा अब सब झुर्रै झूर।
बब्बा:- खूब इस्तेमाल किहेन हम सब पय आबै बाली पीढ़ी के लाने का किहेन। सबके मौउत केर इंतिजाम।
अधेड़:- सही मा पेड़ त बीमा होयगें। खुद फायदे मा लड़िकौ नाती मजे मा।
हीरालाल:-पहिले जंगल नसायेन फेर आमा जामुन नीम तापेन। लगायेन केतने?
बुद्धा:- हमार त नसाइन गा भाई, अब आगे के सुधि लीन जाय। पेंड़ लगाये जाँय।
पागल:- रूपिया, हबा पानी न देई, देखा देखा सब झुर्रै झूर।
बब्बा:- एक बाति अउर, जौन बंधबा फुटताल हैं, सलगा पानी साथै उपजाउ माटी नरई नरबन मा बहि जात है ओहू केर प्रबंध करै का पड़ी। जहाँ भर पानी रोका जाय सकत है, रोका जाय औ बरसा केर पानी अधिक से अधिक भुईं मा सोखाबा जाय।
श्याम:-एक बेर सरकार के तरफ से कंटूर खोदाये गें रहें पय सब पटि गें।
बब्बा:- पुरिखन के बंधाये बंधबा, जहाँ चैमासे के पानी समेटे भुईं मा सोखामै उआ पानी आय मिलै कुअन मा। कुआँ बरहौं महीना लबलबान रहत रहें। मनई चार हाँथ के जमरी से निस्तार करत रहा।
महावीर:- अब त गाड़ी भर रसरी लागथी।
फूलमती:- अब तो पानिन नहीं बरसै, बंधबा कहाँ से भरैं पाबै।
तेरसी:- औ कबहूँ बरसतौ हय तो बंधबन के मेड़ जउन ओधसाय दीनगें हैं, उनमा खेती करय लागे हैं, पानी कहाँ भरै, सब बहि जात है।
हीरालाल:- सब सुधारा जाय। पानी केर सोख्ता सबते जरूरी हैं।
श्याम:- का य सब होय सकी
सजीवन:- तोसे कुछू न हौई।
तेरसी:- अबहूँ समय है, चेत लेया नहीं तो काजौ न होई, रड़ऊ कहइहा(हँसती है)
बब्बा:- बहुत जरूरी है सब जने पानी के सोख्ता जरूर बनामै।
श्याम:- अगर पानी भरा रही तो मच्छर बिमारी इया तो बढ़ि जात है।
हीरालाल:- एक खास मछरी होथी ओही डारा जई, उआ मच्छर के लारवन(लार्वा) का खाय लेथी। मच्छरन के चिन्ता न करा, ओखर इंतिजाम होय जई ।
महावीर:- उआ कहाँ मिली?
हीरालाल:- अरे सरकार से येमा मदद लेब, जाँगर हमार सहारा सरकार के।
बुद्धा:- सब मिल जई। पहिले जौउन करै का है उआ कीन जाय। (सब लोगों में काफी उत्साह ह,ै औरत मर्द सभी ने कमर कस लिया है। यह हमारी समस्या है इसका निराकरण हम ही करेंगे)
श्याम:- जब सब जागा पेंड़ लगि जइहीं त खेती कहाँ होई, जन बढ़ि रहे हैं ऊँ कहाँ जइहीं।
अधेड़:- इहै तो सब कहत हैं, ‘हम दो हमारे दो’। जन ‘कंटोल’;ब्वदजतवसद्ध होय जाँय काहे ते कि जमीन त न बाढ़ी।
बब्बा:- जंगल जरूरी है। दुई हाँथ के चइला के लाने, एक ठे थुनिया के लाने पूर बिरबा
अधेड़:- आबा सरपंच तुम्हारै कमी रही।
सरपंच:- हाँ पता मिला येसे सीधे चले आयेन।
अधेड़:- कहूँ गय रहे का?
सरपंच:- हाँ, सी ओ साहेब के लघे गयन तै। एक हैंड पम्प मंजूर होयगा है।
सजीवन:-चल सेमलाल इया खबर हरबी अपने होबै बाले ससुरार मा पहुँचाबै केर प्रबंध करा, कोऊ ताके है। है कि नहीं।
बब्बा:- दादू सरपंच, ट्यूबवेल कराये से का समिस्सा केर निदान होय जई?
तेरसी:- हाँ बाबा बहुतै दिक्कत है पानी केर। कम से कम कोऊ पिआसा दुआरे से लौउटाबै का न परी। (सरपंच आश्चर्य में है कि गाँव में इससे बड़ी और क्या सुविधा हो सकती है। उसके हिसाब से सब खुशी से झूम उठेंगे, वैसे इस गाँव के लिये है भी बड़ी बात)
पागल:- आराम हराम है। मरोगे सबै मरोगे, सब झुर्रै झूर। (सरपंच अचंभित है)
बब्बा:- बाति अइसन आय कि मसीन से दस पोरसा, पचास पोरसा खेदाय दीन जई। हर साल गहिरे अउर गहिरे कहाँ तक, अइसन करत पूर भुईं छेदि डारब, फेर..का होइ?
फूलमती:- नहीं ठीक कहित हैन अपना। सरपंच पूर बात जानै नहीं। अबै एक ठे हैंडपम्प लगि जाये, हम लोग मेहनत करब न, पानी ऊपर अई।
सरपंच:- आखिर हमहूँ त जानी के का बाति आय।

रतिया:- हमरे हिसाब में पेंड़ लगाउब सबते जरूरी है अपने मइके औ आस पास सबै जागा इया बात फैलाबा जाय। पूरी दुनिया के लोग लगि जइहीं तो आजै झंझट से बरी।


सेमकली:- सही आय, पहिले पानी बरसाबै केर इंतिजाम होय फेर सोख्ता बनै।
हीरालाल:- बरसात के पहिले सोख्ता बनी, बरसात में पेंड़ लगहीं।
सरपंच:- आखिर हमहूँ त जानी का बात आय, कौन योजना पास भय है?
अधेड़:- सब बताउब पय पहिले इया बताबा तुम साथ मा है कि नहीं।
श्याम:- न सरपंच भाई रोजगार गारंटी से मदद न मिल जइ।

फूलमती:-सुना सरपंच अब गावँ मा उहै काम होई जेसे परियाबरन सुरक्षित रहै, समझे।

रपंच:- ह लेया मजिसटेट फैसला दई दिहिन, हओ भौउजी जो आज्ञा (हाँथ जोड़ सिर झुकाता है) अउर परियाबरन नहीं पर्यावरण, ग्राम सभा में पास करी, जउने मा सब केर भलाई हो उहै काम होई। जल धारा कपिल धारा...
हीरालाल:- योजना, स्कीम अपना जानी। हमहीं तो बस पसीना बहाबै केर जागा बताई।
अधेड़:- हमरे पंचेन के भाग से बाबा हियन पधारै हैं। सब कोऊ जिऊ जान से लगि जात जा , अब आपन जंगल, हबा पानी माने कि आपन जीबन बचाबै का है।
सरपंच:- एहिन से सयनबे कहत रहें कि ‘सयानन का झपलईया मा बंेड़िके बरातै लई जात रहें।’ धन्नि बाबा धन्नि हैंन।
बब्बा:- अरे नहीं दादू, धन्नि हैंन अपना पाचैं। अइसन सबै गाँव बाले सोचि लेंय तो जौन आफत सुरसा के नाई मुँह फारै सबका लीलै खितिर खड़ी है, नस्ट होय जई।
पागल:- (नाचने लगता है) दुख भरे दिन बीते रे भैइया, अब सुख पायो रे (अचानक चुप हो तर्जनी सबकी तरफ तान कर) किरिया कय लेत जा। ( सब खड़े होने लगते हैं)
अधेड़ः- रहिजा रहिजा, ऐ रे..तेरसी रतिया हिंयन आउ सेमकली कुछ गान तान होइ जाय।
जा हो कोऊ दउड़ि के बाजी बाजा लय आबा।
(सब बैठने लगते हैं। औरतें तैं रे. तैं करती शरमाती एक दूसरे को धक्का देती हैं के बाद)
महिला कोरस:- आबा सिब कोऊ मिल के बरसा के पानी का सहेज लेई ना।
बहा जाये पाऽनी आबा मेंड़ बनाई , बूंद बूंद जोरि के समुंद बनाई ,
सब कोऊ मिलके बिरबा लगाई । निपनियाँ गाम का पानीदार बनाई ना।
गाना खत्म होते होते गाँव के मवेशियों को लेकर चरवाहे बाँसुरी बजाते हुये वापस लौट रहे हैं। पूरे आसमान में त्याग उत्साह का रंग फैलने लगा है।
पागल:- सबेरे के भुलान साँझ घर लौउटि आमै तो उनहीं भुलान नहीं कहे का होय। समझे (दर्शकों की तरफ इशारा) सब समझि ग हैं।
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( अन्तिम)
गाँव के लोग ष्ॅंजमत ींतअमेजपदहष् के लिये ‘सोक पिट’ बनाने, तालाब एवं बाँध सुधारने के काम से निकल पड़ते हैं। तालाब बन रहे हैं, बाँध बँाधे जा रहे हैं। वृक्षारोपण हो रहा है, लगता है पूरी धरती के लोग लगे हैं। पागल खुशी से नाच रहा है।
गाँव में लोहार की मड़ई (दुकान) लगी है। लकड़हारे टंगिया कुल्हाड़ी लेकर आयें हैं।
लकड़हारा:- ऐ तुलबुल, लेया कुदारी बनाय देया।
लोहार:- टंगबा केर कुदारी बनबइहा। (काम में लगा है)
लकड़हारा:- हाँ रे अब बिरबा न कटिहें, बलुक लगाये जइहीं
लोहार:- चला तुमहीं तो पुन्न मिलबै करी साथै हमरौ पाप कटिहीं।
लकड़हाराः- खाना बनबै भरे का तो ओइसै झूर लकडी़ मिल जाथी फेर येखर का जरूरत है।
लकड़हारा 2:- हबा, बिरबा, पानी भगमान आहीे , नाराज होईगें हैं। कुछ तो पाप कटै। बनाय दे भाई इया हतियारा का कूटि कूटि के। पुन्न होई।
लोहार खुशी खुशी काम करने लगता है।
दृश्य परिवर्तन होता है। जमींदार पागल के पास आते हैं।
जमींदार:- (हाँथ जोड़ कर) हम बहकाबै मा आय गै रहेन, माफ कई दया। हमार जेतने तलाब हैं सब तुम्हार आहीं, उनखा बनबाय दीन जई। आपन गलती समझि मा आय गै है।
अधेड़:- जिऊ चाही तो रहें जंगल औ पानी, इनकर करैं संरक्षन अउर संवर्धन।
भीड़ काम में लगी है। वृद्ध की आकृति उभरती है, धीरे धीरे धुंधली होती हुई बादल बन जाती है। पागल आकाश की तरफ देखता रहता है, आँसू बह रहे हैं।
सजीवन:- न भाई, बाबा तो नकसा बदल दिहिन। उनखर नाम का है?
हीरालाल व अधेड़:- पानीदार
कई लोग एक साथ:- ऐं ! का?
पागल:- पानीदार ( चिल्लाकर ) अउर का, पानीदार।
मौसम बदलता है। श्यामलाल की शादी हो जाती है। आज अच्छी बारिष हो रही है। श्यामलाल की नई दुलहन बड़े ध्यान से बारिष होते देख रही है। खपरैल से पानी की बूँद टपकती है, टप्प..टप्प। दुलहन मुस्कुराती हुई उठकर अंजुली में सहेज लेती है। आकाश में बादल सघन होते हैं जो धीरे धीरे एक चक्र में बदल जाता है । चक्र के मध्य से एक प्रश्नचिन्ह उभर कर सामने आता है।
क्या आप ब्रह्मा की अमोल धरोहर इस सृष्टि को नष्ट होते देखना चाहतें हैं ?
क्या आप पानी के लिये तीसरे विश्व युद्ध में जाना चाहतें हैं ?
अगर नहीं तो आइये हम पानी की एक एक बूँद सहेज लें।
सबके पास बल है, बुद्धि है, भावनायें हैं, प्रयास करें हम होंगे कामयाब।
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