K.Sudheer Ranjan

K.Sudheer Ranjan

Sunday, February 16, 2014

नाटक ‘‘चली बराते’’


नाटक ‘‘चली बराते’’
                                   
(नाऊ का प्रवेश )                                                         
नाऊः-सदा भवानी दाहिने, सन्मुख रहें गणेश। चार नहीं.... तीन देव मिलि रक्षा करें ब्रह्मा विष्णु, महेश। अपना पंचन  का हमार प्रणाम। देखी काल दादा रामधनी के लड़िका केर बरात जई। अपना पंचन का चलइ का है, जेखर बारन कटा होई, दाढ़ी न बनी होई उँ थोका पहिले आय जइहीं, ओनठे सब मेर के व्यवस्था हबै, औ देखी हमार निमेदन इया है कि अपना पंचे अपने-अपने घर से खाय पीके आउब, ऐसंे कि लडिका के मन कुछ सकबंधें मा है। अच्छा हम जइथे, हमही अबे बहुत  काम है।(जाते जाते पुनः लौटता है) देखी चलत चलाबत एक बेर फेर से सुन लेई जेखर दाढ़ी न बनी होई, बार न बना होई उँ थोका पहिले आय जइहीं। अच्छा हम चलित हैन, हम नउआ आहेन साथै इया अजायब घर केर नौकरौ। हमही बहुत काम है अपना पंचे मजा लेई।( तभी एक व्यक्ति मंच पर आता है)
गोकुल- नहो बहुत हरबियान है, कृष्ण चले बैकुण्ठ राधा पकरिन बाँह इहाँ तमाखू खाय ला उहाँ तमाखू नाहि।
नाऊ-हम अपना पाँचन का नेउतय आये हैन। रहि जई सुपारी हम देइत है इया लेई (हाँथ में रखता है) गोकुल- (सुपाड़ी काटता है जो सडी निकलती है उसे फेंक देता है) नउआ छत्तीसा खाये आन के पीसा उपर से मांगय हींसा
नाऊ- सरी सुपारी खोटहा दाम बखत परे मा देइहें काम।(सुपारी उठा लेता है)
गोकुल-बरात कबय निकरी
नाऊ- ह लेई इया त नहीं पूंछेन ओऊ नहीं बताइन, होइगा जब निकरी तब, अपना बढिया खाय पी के आय जाब
गोकुल-अच्छा! हाँ हो़ हम सेतुआ घलाय गठियाय के निकरब।
नाऊ- ठीकय आय। आपन हँथा जगन्नथा अरबे दरबे का सेतुआ काम अई।(जाने को करता है) अपना से एक बात बताई देखी कोहू से न कहब बाप पूत के मचा है जंगम जंगा। दुल्हा कहत है हम इया काज न करब
(बुआ का आगमन साथ में एक मोटा लड़का है)
बुआः-बताबा इया अउसरहा घर आय दुआरे मा कोऊ नहीं। दहिजरा हरे खाय खाय मोटान है, खाय क दय दीन जाय त कुरई भर भकोस लेइहीं। उआ कट्टहा कहे रहा कि लारी अड्डा मा मिलि जाब पय आबा नहीं हुरमुदात होई पदलेंहणिन के संगय.... हाय हाय रे..... जिउ त पाकि के खता होइग रे (समान रख कर बैठ जाती है तभी नाउ आता है। बुआ को घूम कर चाारो तरफ से देखता है बसंत सकपकाते हुये माँ के पीछे हो जाता है)
नाऊः- कठिन भूमि कोमल पद गामी, कवन हेतु बन बिचरहूँ स्वामी। सकल सूरत बहुत नीक लगा कहाँ केर आहू?
बुआ- का कहे का कहे न रे, दहिजरा, कट्टहा, मुँहझौंसा, कउरहा, पापी तैं हमहीं नहीं जनते हम अपने मइके आयेन हैन, इहय गाँव मा कइक के नेकुआ फोरे हैन। तैं को आहे को आहे रे तैं बोल बालते काहे नहीं बोल (आगे बढ़ती है। नाउ पीछे हटता है।)
नाऊ- (डर कर, जीभ निकालता है) हम जानि गयेन अपना बड़की दिद्दा आहेन....(डर कर मुर्गा बन जाता है)कसम से दिद्दा हमहीं थोर थोर लागत रहा(उतने मे बुआ उसके ऊपर झोला रख देतीं है)

बुआ-अच्छा! जानत रहे ,चल घरे मा समान पँहुचाउ(नाऊ गिर जाता है गिरे गिरे पाँव की तरफ हाँथ बढ़ाता है) रहि जा दूरिन रहे छुइ ना दिहे
(तभी एक मटकी लिए दुल्हे का पिता आता है जो अत्यंत प्रसन्न है बहन को देख कर)
रामधीनः-अरे दिद्दा आयगयेन..आबा भइने। नरे परतउआ कहाँ है रे आवत जा बुआ आय गईं है कहाँ भितरे घुसे है। ल हो रमेसरा इया लै जा।(मटकी देता है)
नाउः- एही का करी।
रामधीनः- हमरे कपारे मा धय दे।
नाउः- (कान में हाँथ लगाकर) अएँ.........का काहेंन धय देई, पय इया माटी केर आय मूड़े से ढनगी त फूटि जई।
रामधीनः- अरे चिपोंग ले लय जा भितरे धई दे, व का कहत हें ....... अरे एही रंग चांेग के लय न जाबा जात है उआ बरायन, जा धई दे भितरे।
नाउः-जय हो बरायन दाई हमरौ सुधि लिहे (मटकी लेकर चलाता तभी दूल्हा और लच्छा आता है)
लच्छाः- काका पांय लागी। बुआ पाँव परित हैंन तर तैयारी होइ गै काका।
रामधीनः- खुशी रहा दादू। तर तैयारी होय रही है, तोहार होय गय।
लच्छा:-पहिले दुलहा केर तैयारी होय फेर हमार त होइन जई।
(लक्ष्मी की माँ पारबती का आगमन)
पारबती- (बैठ कर आँचल पकड़ तीन बार पैर पड़ती है) दीदी जिउ अब अपना आय गैन हमार जिऊ सुचित्त भा। अपना शहर केर रहवइया हम लोग गँमइहा, अब अपना सब सम्हारी(लक्ष्मी का आगमन)
लक्ष्मीः-बुआ पाँव परित हैंन, न दादा इया ओन्हा ठीक रही न दुआरचार खीतिर
दुल्हाः- तुहिन पंचे जात जा बराते हमही नही जाय का आय।
लच्छाः- बिटियन का नही जाय का आय हैन काका।
लक्ष्मीः-(लक्ष्मी ठुनकते हुए)आँ........ हम जाब कोऊ जाय चाहे न जाय, हम जाब बस (जोर देकर)।
लच्छाः- बढिया है, तैं भर चली जा, तोहार दादा त जाइन का नही कहै, बढिया रही।
लक्ष्मीः- ये लच्छा-कच्छा चुप्पै रहे नही त बजाइन देब फेर।
लच्छाः-आपन मुंह देखे है। तै न जाबे बस।
लक्ष्मीः-  तुम आपन मुंह देखा। बाबू (रूआँसी होकर चिढती हुई) बरजि लेई येखा। (रामधीन उनकी नोक झोक सुनकर मुस्कुुरा रहे थे)
रामधीनः- न परेशान करत जा हमरंे बिटिया का। जा बूटू इंतिजाम कर।
लक्ष्मीः- होएए लइ ले (खुश होकर चिढाते हुए चली जाती है।) (लच्छा दूल्हे से धीमें-धीमें कुछ कहता है,जान पडता है कि मजाक कर रहा है।)
बुआ - अब बिटिया बराते जाय उआ तैयारी जरूरी है। हमही लेय का लारी खाना तक कोऊ नहीं आबा अपने से आ गयन, पानी पिंगल तक कोऊ नहीं पूँछिस।
पारबती-हम त पूँछित हैन, हलबाई लगाय के मिठाई बनबाये हैन रुकी लय आइत हैन(चली जाती है)
लच्छा-(रामधनी की ओर मुखातिब) अच्छा तिलक पीटि लिहन कक्का बरात मजे कहोय चाही।
दूल्हाः-(चिढते हुए) चुप रहु यार हमही इया सब नीक नही लागै।
बुआ- का नीक नहीं लागय
लच्छाः-रामप्रताप का इया सब नीक नहीं लग रहा है। कहत है बियाह जोग बहिनी बइठ ह अउर भई बियाहा जाय रहा हैै। 
रामधीनः-का चाही? जब ऊट पहार के जमरे आबत है तब जानत है आपन औकात। तुम लड़िकबा का जाना। आज के जमाना मा बाप बड़ा ना भैया सबते बड़ा रुपइया, ओहिन केर परबंध किहे हैन। इया बताबा तुम्हार सखा काहै थोबर फुलाये, पेरुआ कस मुँह बनाये है। हम अइत है देखी हमार ओन्हा लत्ता धोबरि गें कि नही? (तभी मुनिया का आगमन होता है, दूल्हा और उसका दोस्त उसे देखकर खुश होते हैं, रामधीन उठकर चल देता है। तभी मुनिया और पारबती कटोरी लिये आती है)
मुनियाः-बुआ पाँव परित हैन, इया धमधूसर को आय (बुआ के लड़के को इंगित कर, बसंत शर्मा जाता है)
पारबतीः- का कहे बिटिया। लेई पानी पी लेई( बुआ से)
मुनियाः- (सकपकाते हुए) कु..कु..कुछू नही काकी, उआ.......
बुआः- पानी कहाँ है
लच्छाः- आए गए छम्म्मक छल्लो।
मुनियाः- दिहेन ता कपार फाटिन जई, तहिन उटपटाँग सिखौते है।
लच्छाः- हम का सिखायेन,  येखे करेजै नही आए।
मुनियाः- (दूल्हे से) तोहरे मुँहे मा दही जमा है का?
बुआः- इनखर लच्छन त देखा
दूल्हाः- खोपडी न चाट, चल भाग इहाँ से। लक्ष्मी.........(लक्ष्मी को आवाज लगाता है)(लक्ष्मी का प्रवेश, मुनिया को देखकर )
लक्ष्मीः- तै इहाँ का करते है, मौका मिला नही कि पहुँचि गए।  चल हमरे मेंहदी लगाए दे।             3
लच्छाः- हमँहू मेंहदी लगाय सकिथे।
लक्ष्मीः- हँा हो तुम्हरे कस को लगाय सकी। मेहरा नही तो, अबय जा आपन काम करा।
पारबतीः- हियन का करते है जा, चढाव के समान सहेज लेत जा। (दोनो सहेलियाँ आपस मंे काना-फूसी करती हैं।)                                                               बुआः- बाप रे थकि ता गयेन। (वहीं खाट पर बैठ जाती है) हम जानिथे तुम पांचे जानबूझिके हमहीं रेंगाये है।
लच्छाः- नही बुआ अउतेन पय काम में फँसि गयेन
पारबतीँः- (हँसती है) दीदी जिउ अपना केर बहुत जाँगर है, तबय ना अपना के भाई तारीफ करत नहीं अघाय।
मुनियाः- लेई बुआ अपना का मींज देई थकि गयेन होइहन ऐसे।(हँसती है)
बुआः- का खीस निपोरते है, अच्छा स्वागत करत गय। (मुनिया कंधा दबाती है) अब का तैं घोंघा चपइहे।
लक्ष्मीः- चल रे चल मेंहदी लगाउब (मुनिया को खींचने लगती है)
बुआः- हाँ जा जा ठेपरा बनाबत जा, ना पानी न पिंगल।
पारबतीः- अच्छा रहि जई हम लई अइथे।
लच्छाः- ए तुम पांचे आपन सिंगार बाद मा किहे बुआ केर ध्यान देत जा नही ता.....
पारबतीः- लेई भइने पानी पी लेई....
बुआः- पानी कहा है?
पारबती:- पहिले कूछु खाई लेई।
लच्छाः- ऐ लच्छी पानी ले आव।
लक्ष्मीः- ऐ रे ऐ कायदे से! हम न लेआउबै।
लच्छाः- लच्छी का लच्छी न कही त का कही लक्ष्मी माता।
लक्ष्मीः- अम्मा देखि लेई, जेइन नही तेइन चिहिडिआवत रहत हें।
पारबतीः- अच्छा पानी लै आव।
लक्ष्मीः- अच्छा का? हम न ले अउब।
बुआः- बाप रे आज काल के छोकरिया कैइसन कतन्नी कस जबान चलौती हैं।
(लक्ष्मी और मुनिया दोनो भुनभुनाते चली जाती है)
(तभी रामधनी का आगमन साथ में नाउ कुछ सामान सिर में उठाए आते हैं)
रामधनीः-दिद्दा आराम कय लेई थकि गय होइहन
नाऊः- (बीच में) इया कहाँ रखी। (कोई ध्यान नही देता)
लच्छाः- बुआः- डिल्ली से आए रहेन है बडी दिक्कत भै।
इया डिल्ली का आय डिलहरा सुने रहेन खेतवन माँ।
बुआः- अरे चिपोंग डिल्ली इतना बडा शहर राजधानी तुम का जाना कूप मंडूक।
लच्छाः- बुआ डिल्ली नही दिल्ली।
नाऊः- इया कहाँ रखी?
रामधनीः- महराज नही आएँ?
बुआः- बडा काम रहा नही आय सकेें। 
नाऊः- (जोर से) इया कहाँ रखी?
रामधनीः- दिद्दी अपना आय गयन अब सब सम्हारीे।
नाऊः- (चिल्लाते हुए) इया कहाँ रखी? (माँ बुआ के सिर की तरफ इशारा करती है नाऊ बढता है, तभी बुआ उसकी तरफ देखती है)
पारबतीः-हमरे कपारे माँ।
नाऊः- आँय
पारबतीः-मरौ तोर अकिल जा भितरे धई दे। कहाँ रखी कहाँ रखी?
रामधनीः- हमरे नाऊ ठाकुर का न बिगड़ा, बड़ा काम काजी है, सब सम्हारे है। अच्छा इया बताबा हमार बास्कट छिपिया दय गा का? देख लेत जा नहीं त का पहिरब। कइसन लगी बिना बास्कट पहिरे समधी के दुआरे ठाढ़ होयमा।
पारबतीः- तुम ता अपने माँ लगे है। लड़िका बियाहै जाइ रहे है पै लागथै कि समधिन का भिरुहाय के पुतऊ के साथै बिदा कराय लय अइहीं।
बुआः- तू काहे झरातु है बिटिया त जाइन रही है तुमहूँ चली जा बराते। (नाऊ का आगमन)
नाऊः- हरदी चाऊर कहाँ है?
पारबतीः-तोहरे मालिक के जेबा माँ जा हाँथ डारि के निकार लिहा। (नाऊ रामधनी की ओर बढता है)
रामधनीः- (नाऊ से) रूकि जा रे, बड़ा दँतनिपोर है। का बाति है तोहार चित्त ठीक नही लागै।
पारबती:- तुम ता अपनेन मा लगै हेै अउ हम पिसरे जइत हैन।
नाऊः- अरे हमही हरदी अउ चाउर चाही।
पारबतीः- खाय खेपडी त लिहे, हियन बहिरे कहाँ धरा होई हरदी अक्षत, अरे हुआँ पटउहाँ मा धरा होई बइआ हरेन से माँग लिहा। (दुल्हे की ओर मुखतिब) न दादू तू काहे मुँह फुलाये है।
दुल्हाः- हमही इया काज बियाह नही करय का आय।
रामधनीः- का कहे काल्हि बरात जाय का है अउ कहत है काज नही करै का आय, मारेन लाठी ता कपार फाटिन जई।
दूल्हाः- मारी लाठी उहय ठीक होई।
बुआः- का दादू इया का कही रहे है जग हँसाई करइहा का(परतउआ की ओर बढ़कर) (हल्ला सुनकर लक्ष्मी और मुनिया भी आ जाती है, तभी नाऊ भी आता है।)
नाऊः- जामा जोरा  लई के छिपिया आबा है सीधा माँगत है।                               रामधनीः- (गुस्से से) हमार बास्कट लय आबा है कि नहीं जा पूँछा न लय आये होय त कोठरी मा बेंडि के मारा।(लडकियाँ हंसती है।)
   
नाऊः- फुरिन फुर बेंड़ि के मारय का है? उआ हमसे देंहगर है, अपनौ चली अपना पकड़ि लेब हम मारय लागब (माँ और लड़कियाँ बहुत हँसतीं है।)        
बुआः- ही ही ही दांत कढती हैं निंचिउ लाज हया नहीं है औ इया नाऊ दंतनिपोर  है। रहि जा हम। देखिथे सब। (रामधनी, बुआ, माँ और पीछे-पीछे नाऊ चले जाते हैं।)
मुनियाः- देखा अबहूँ समय है सब से बताय दीन जाय कि इनखे मन माँ का है।
लच्छाः- एक्कौ के मूडे़ के बार न रही जई।
लक्ष्मीः- जउन होय क है होय जाय हम जईथे न बाबू से बताबै। (जाने को करती है ,मुनिया पकड लेती है)
मुनियाः- ऐ चिबिल्ली रुक।(बसंत आता है)इया धमधूसर महाराज पहुच गें
लक्ष्मीः- तुम लोग नाम काहे बिगाडते है।
लच्छाः- तोहार रूप इया मेर के है ऐसे।
बसंतः- हम कोई मदद कर सकते हैं
लक्ष्मीः- हम न मानब भंडाफोर कई देबै। (नाऊ का प्रवेश)
नाऊः- का फोर रहे है।
सब साथ में:-बीच मा बोलय बाले केर कपार, तोहार खोपडी।
नाऊः- आपन मूड बचाए रहे। (चला जाता है, माँ का आगमन)
पारबतीः- (लच्छा से) दादू अपने सखा का समझाबा, बडी नामूजी होई, सब काज प्रयोजन हंसी खुसी होय का चाही।
लच्छाः- अरे अब हम का समझाई। (नाऊ का आगमन)
नाऊः-झाँपी आय ग है।
दूल्हाः- अम्मा हमहीं इया काज बियाह नही करय का है।
नाऊः-कोऊ नहीं सुनय झाँपी लैय के बसोर आबा है।
पारबतीः- नही दादू अब काल्हि बरात जई आज इया मेर के बतकहाव ठीक नही आय।
नाऊः-अरे कोऊ सुनय काहे नहीं झाँपी आय ग है।
पारबतीः- रहि जा रे। झाँपी-झाँपी, कोऊ कुछू बतात रहै इया बीच माँ घुसि के नाक अड़ाइन देई.....जा झाँपी मा घुसि के बैठि जा औ ढकना दई ले।
नाऊः- अरे उआ चढाव के समान रक्खै का रहा येसे। हम झाँपी मा हम समाबय न करब नही त बइठ जइत, औ बिआह गाइत।(लडकियाँ हँसने लगती हैं)
दूल्हाः- तुमही पाँचन का बडी हंसी आय रही है।
दोनोः- त का रोई। (माँ बडबडाती नाऊ के साथ चली जाती है)

बसंत:- ये झाँपी क्या है
मुनियाः-अंगरेजी न बोल भइया थोड़ा चुप्पे रहा
दूल्हाः- समझि मा नही आवै का कीन जाय।
लच्छाः- चला चली भाग चली।
दूल्हाः- कहाँ? और तुम काहे भगिहे?
लच्छाः- उआ का है कि..............।
लक्ष्मीः- भाई हम नही बताएन।
दूल्हाः- का?
मुनियाः- जइसेन हम तुम वैसे इ पंचे।                                  
दूल्हाः- (तमककर) का बे सारे हमही कानोकान खबर नही आय, रहिजा तोहँई बताइथे। (लच्छा की ओर बढता है, लक्ष्मी और मुनिया पकडती है। लच्छा जमीन पर बैठ जाता है और बसंत घबरा जाता है।)
मुनियाः- मामिला का है?
दूल्हाः- हमारबाप राम रुपिया के लालच मा हमार काज कय रहे हैं जउन हम नही चाही।
लच्छाः- हमरे साथौ इयह बात है हमरौ काज तय है उहै रुपिया केर कारण। अगर तुमही आपत्ति न होय त हम लक्ष्मी से बियाह ....................
मुनियाँः- जउंहर होई जई, पूरा समाज जुरा है।
लक्ष्मीः- अउर का फेर हमही कोऊ गाँव मा फटकै न देइहीं।
 दूल्हाः- सही आय।
बसंत:-मेरी शादी करा दो
मुनिया:- अपना फेर बोलेन
लच्छाः- त फेर कय ले ना काज, प्रपंच रौपे है। देखा हम लोग अगर अंइसन करी त इया दहेज लोभिन का  अच्छा सबक होई।
मुनियाः- गाँव समाज बडी बदनामी होई।
लच्छाः- नही अपने जात बिरादरी मा दहेज सबसे बडी समस्या  है। न बिरादरी के न गोत्र के अइसन कउनो बात नही फेर पहिले त हमार परिवार सहमत रहा। ऊं धन्ना सेठ आय गें खरीदे तो हमरे बापन के मति बदलि गय अउर इया समिस्सा होय गय।
दूल्हाः- सही आय अम्मा एही से तैयार होइ गई रही नही तो मुनिया का चाहत रही, बाबू कहिन कि लक्ष्मी केर कइसन ब्याह करब।
लच्छाः- काका पलटि गें नहीं त खुसी खुसी हमार तुम्हा काज होय जात । हमरौ बापराम मुनिया के खातिर परेशान हैं।
मुनियाः- अरे जब हम लक्ष्मी के लाने कहेन त कहिन कि काहे उहै भर है बेटउना वाला हमहूँ लेब तिलक
लक्ष्मीः- एकठे समिस्सा अउर है। हुअन बरात का ताके रहिहीं अउर बाबू के बड़ी बदनामी होई
मुनिया:- सही आय उआ बिटिय के दुरगत होय जई को करी काज ओसे
दूल्हाः- बड़ी पंचाइत है
बसंतः- मेरी शादी करा दो
लक्ष्मीः- भइया अपना चुप रही(सोचती है) अरे वाह( अचानक खुशी से) इया ठीक रही
मुनियाः- का ठीक रही अउर कइसन खुशी होय गय
लक्ष्मीः- ( बसंत का हाँथ पकड़ कर ) सही भइया अपना करब काज
बसंतः- हाँ हम करब हमारौ शादी नहीं होय रही है
दूल्हाः- बाह अपनौ रिमहीं बोलय लागेन, अब होय जई काज
मुनियाः- हमहूँ का बताबा काहे तुम दुनहूँ भाई बहिनी बड़े खुशी होय जात गय  
लच्छाः- हाँ हम समझि गयन। देखा पूरा इंतिजाम है बरात के। अब उआ बरात जई बसंत भइया के सब के इज्जत बचि जई अउर हमरे पाँचेन के मन माफिक काज होय जई
मुनिया और लक्ष्मीः- अउर धमधूसर दादा के बियाह होय जई ( चिल्लाकर) चली बराते
दूल्हाः- रहि जा रहि जा अबय एक ठे समिस्सा है घर (मामा का आगमन)
मामा- बाह बेटबा बाह छाती फूलि के चैराहा होय गय
सभीः- चैराहा
मामाः- हाँ हो चकलाय गय छाती। खुशी रहत जा तुम पंचे, सबके मान मर्यादा का ध्यान धरत अच्छा निरनय लेत गया दादू जिऊ जुड़ाय गय।
लच्छाः- मामाजी काका का को समझाई उनहीं रुपिया देखाथी।
मामा:- रहि जा हो हम इनखे बाप के सार आहेन सार मतलब तत्व मतलब निचोड़ हम निकरि गयेन त कुछू न बाँचि समझे?
बसंतः- मै समझ गया। दूध से निकली क्रीम, गन्ना से निकला रस और महुआ से....
मामाः-ऐ अब ज्यादा नहीं(नऊआ सब को बता देता है जिससे बुआ रामधनी और पारबती घबड़ाये भागते हुये आते हैं)
बुआः- ये सब क्या हो रहा है बसंत( डाँटते हुये)
बसंतः- सब ठीक हो रहा है
रामधनीः- नहीं भइने इया ठीक नहीं आय। सरऊ तुम अच्छा लड़िकन का सिखाय रहे है।(मामा का हाँथ पकड़ कर हिलाता है)
बसंतः- सब ठीक है मामाजी एहिन में सब के भलाई है। दहेज लेना अउर देब दोनौ अपराध है।

 पात्रः- 1. नाऊ                      2.रामधनी                        3.बुआ                    4.पारबती                         5.दूल्हा                         6.लच्छा               
7.लक्ष्मी                          8.मुनिया                        9.बसंत                
10.गोकुल                        11.मामा

Wednesday, June 12, 2013

बघेल युगीन रीवा की साहित्य परंपरा

दिनांक 22 एवं 23 मार्च 2013 के बघेल युगीन संस्कृति, पुरातत्व एवं इतिहास शोध संगोष्ठी हेतु आलेेख।

बघेल युगीन रीवा की साहित्य परंपरा
                               
हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों ने हिन्दी साहित्य की लगभग सहस्त्र वर्षों की दीर्घ कालीन परम्परा तीन काल में विभाजित किया है- आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल।1 तदानुसार (1) आदिकाल 1000-1500 र्इ0 (2) मध्यकाल 1500-1800र्इ0  (3) आधुनिक काल1800 र्इ0 से प्रारंभ।2
विषयान्तर्गत अनुशीलन पर तथ्य उजागर होता है कि उक्त परंपरा का प्रारंभिक है मध्यकाल और रचना है 'दुर्गादास महापात्र —ति अजीत फते नायक रयसा। रचना काल —ति में उधृत नहीं है। आंकलन है
(क) रायसा रासो का संक्षिप्त संस्करण एवं शैली के रूप में दुर्गादास महापात्र व्दारा मूल घटना के कुछ दिनो बाद लिखा गया। इसका प्रकाशन और भी बाद में हुआ।(3)
(ख)....इससे जान पड़ता है कि ग्रंथ रचनाकाल युद्ध के दो साल के हेर फेर का है।4
(ग) उक्त युद्ध 4 दिसम्बर सन 1796 में हुआ था जो नैकहार्इ युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है।5
कवि दुर्गादास ने 'अजीत फते नायक रायसा की रचना हिरान्या वंश के राजाराम की आज्ञा से की। दृष्टव्य है उक्त ग्रंथ के छंद 40, 43 एवं 44।
 ग्रंथालोचन - बीर रस प्रधान रासों परम्परा से भिन्न इस ग्रंथ में डिंगल तथा ब्रज मिश्रित राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया है, किन्तु क्रियापद बृज भाषा के हैं। अजीत फतेह का स्थार्इ भाव उत्साह है। रौद्र वीभत्स, अदभुत, भयानक का चित्रण, क्रोध, भय, विस्मय, जुगुप्सा जैसे स्थार्इ भाव परिपुष्ट रूप में मिलते हैं तथा अपुष्ट वीर रस का परिपोषण भी करते हैं।
एक बात छूटी जा रही थी, वजह महत्वपूर्ण रचनाओं का प्रभाव ही हो सकता है। राजा रामचन्द्र (1555-92 र्इ0) जो गहोरा का गौरव बढ़ा रहे थे 1563 र्इ0 में बांधवगढ़ आये, इसे राजधानी बनाकर इसी नाम से रियासत कायम की। 1555 र्इ0से 1562 र्इ0 तक ख्यात कलाकार तानसेन उनके दरबार में रहेे। उन्ही के दरबार में कवि माधव उरव्य भी रहे जिन्होने (1556 र्इ0) प्रशस्यात्मक महाकाव्य 'वीर भानूदय की रचना की। रामचन्द्र के पुत्र ने सन 1591 में इस ग्रंथ की प्रतिलिपि करार्इ थी।
रायल एशियाटिक सोसाइटी, कलकत्ता की पाण्डुलिपि क्र0 3109,'रामचन्द्रयश:प्रबन्ध को जतीन्द्र विमल चौधरी ने सन 1946 को प्रकाशित किया। अकबर से कालिदास की उपाधि पाने वाले कवि गोविन्द भÍ ने यह प्रशसित राजा रामचन्द्र को लक्षित कर लिखी है। इन्हे शाही कवि 'अक्कबरीय कालीदास गोविन्द भÍ कहा जाता है। इन्होने 'वीरभद्र चम्पू भी लिखा है।( प्रो0 अख्तर हुसैन निज़ामी : अजीत फते नायक रायसा बघेलखण्ड का आल्हा पृ.227)
ख्यात कवि विश्वनाथ जी की चौथी पुस्त में कवि नरहरि महापात्र जी हुये जो अकबर के दरबार में रहे किन्हीं कारणों से बांधवगढ़ आये थे जो अमरकंटक चले गये उनके पुत्र हरिनाथ तत्कालीन राजा रामचन्द्र के दरबार में आये और यह छन्द कहा :
काहू के करम उमरार्इ पातसार्इ रर्इ, काहू के करम राज राजनसो हेत है।
काहू के करम हय हांथी पर गने पुर, काहू के करम हेम हरिन सों नेत है।।
हरिनाथ जोर्इ जाहि के लिलार लीक, लीक, सोर्इ सोर्इ यहि दरबार आनि लेत है।
महाराज बांधव नरेश राम सिंह तेरे, कर के भरोसे करतारौ लिख देत है। 6
राजा रामचन्द्र के पुत्र वीरभद्र देव हुये (सन1554) सन 1577 में इन्होने काम शास्त्र पर 'कन्दर्पचूड़ामणि ग्रंथ की रचना की। इसे सन 1908 में महाराज व्यंकटरमण सिंह ने प्रकाशित कराया जिसका सम्पादन  'रीवा राज्य दर्पण के लेखक जीतन सिंह ने किया। पं0 सूर्यप्रसाद ने इसकी हिन्दी टीका(वेंकट रहस्य) लिखी। सन 1926 में यह संस्—त-पुस्तकालय लाहौर द्वारा भी प्रकाशित किया गया। वीरभद्र का राज्यकाल अल्प समय का था। इनकी अन्य रचना 'दशकुमार-पूर्वकथा-सार पाण्डुलिपि कलकत्ता में(क्र.जी.9368) सुरक्षित है। पधनाभ मिश्र —त 'वीरभद्रदेव चम्पू पधनाभ मिश्र द्वारा सन 1577 में रची गर्इ।(डा0 राजीवलोचन अग्नीहोत्री)
सन 1668 में कवि रूपणि मिश्र ने महाराजा भाव सिंह की आज्ञा से 'बघेलवंश वर्णनम रचना जो सोमदेव भÍ के कथा सरित्सागर की पाण्डुलिपि से प्राप्त की गयी थी, शुद्ध प्रति तैयार की। कवि रूपणि मिश्र ने महाराजा भाव सिंह की प्रशसित में 100 श्लोक स्वयं रच कर ग्रंथ के अन्त में जोड़ दिए। इस ग्रंथ की प्रतिलिपि कलकत्ता में (क्र. 5398) सुरक्षित है।
कवि हरिनाथ की छठवीं पीढ़ी में कवि शिवनाथ राम हुये। ये गंगा तट असनी नामक गाँव में निवास करते थे, रीवा आये। महाराजा अजीत सिंह ने इन्हें अपने दरबार में राज कवि बनाया और सिलपरी गाँव दिया। संभव है कि इनके वंश परम्परा के दुर्गादास महापात्र हैं, क्योंकि नरहरि दास जी के पितामह महाकवि धीरधर महापात्र जिन्हें महापात्र की पदवी आलाउद्दीन से मिली थी।7 धीरधर संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रंथ 'साहित्य दर्पण के रचयिता थे। इनके वंशज ही सिलपरी ग्राम के पवार्इदार हुए और 'महापात्र या 'भÍ कुल नाम से जाने जाते हैं।
शिवनाथ राम जी के पुत्र अजबेश राम महापात्र हुये और वे महाराजा विश्वनाथ सिंह तथा महाराजा रघुराज सिंह के दरबार में रहे। संस्—त हो या हिन्दी साहित्य रीवा का योगदान पुष्कल और महान है। वैसे देखा जाये तो महाराजा जयसिंह से राजवंश की साहित्य परम्परा चलती है। महाराजा जयसिंह ने स्वयं बीस पुस्तकों की रचना की।8 इनमें 'हरिचरित चंदि्रका, तथा 'कृष्ण तरंगिनी सुन्दर कृतियाँ है और उस भकित उन्मेष से लिखी गर्इ हंै जो भकितकाल की प्रबल प्रवृति रही है।9
हिन्दी के प्रथम नाटक का मान 'आनन्द रघुनन्दन को मिला। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और कुँवर सूर्यबली सिंह ने तमाम सिथतियाँ स्पष्ट की है कि यह हिन्दी का प्रथम नाटक है। आंनन्द रघुनन्दन के रचयिता है महाराज विश्वनाथ सिंह इनका 1833 र्इ0 से 1854 र्इ0 तक राजकाल रहा। विश्वनाथ सिंह समन्वयवादी उन कवियों के श्रेणी में आते हैं जिनके मूर्धन्य कवि गोस्वामी तुलसीदास है।10 इनके द्वारा रचित निम्नलिखित ग्रंथ कहे जाते हैं - अष्टयाम आàकि, गीता रघुनन्दन शतिका, आनन्द रघुनन्दन (नाटक), उत्तम काव्य प्रकाश, रामायण, गीता रघुनन्दन प्रमाणिक, सर्व संग्रह, कबीर के बीजक की टीका, विनय पत्रिका की टीका, रामचन्द्र की सवारी, भजन, पदार्थ, धनुर्विध, परमतत्व प्रकाश, आनन्द रामायण, पर धर्म निर्णय, शानित शतक, वेदान्त पंचक शतिका, गीतावली पूर्वाध, ध्रुवाष्ठक, उत्तम नीति चंदि्रका, अबोध नीति, पाखण्ड खणिडनी, आदि मंगल, बसंत, चौतीसी, चौरासी रैमनी, ककहरा, शब्द, विश्व भोजन प्रसाद, ध्यान मंजरी, विश्वनाथ प्रकाश, परम तत्व, संगीत रघुनन्दन।11 इनका अधिकांश सहित्य उपदेशात्मक और वर्णनात्मक है।
मध्य युगीन हिन्दी सहित्य के प्रवाह में महाराजा विश्वनाथ सिंह नही बहें, उन्होने नाटक आनन्द रघुनन्दन की रचना की। कुँवर सूर्यबली सिंह ''यदि यह रचना काल के अनितम भाग मे न लिखा गया होता तो मध्यकाल रसात्मक अभिव्यकित की एक सश्क्त सरणि - श्रव्य काव्य से वंचित रह जाता, उसकी संपन्नता बाधित हो जाती। अत: विश्वनाथ सिंह ने मध्यकालीन साहित्य को अनुपम अद्वितीय रचना से संवारा है। 'आन्नद रघुनन्दन का रचना काल ग्रन्थ में अंकित नही है। विन्ध्य प्रादेशिक सहित्य सम्मेलन रीवा द्वारा प्रकाशित पत्रिका के सम्पदिकीय मे निर्माण तिथि का निर्धारण हुआ है,- 'आनन्द रघुनन्दन नाटक की रचना सम्वत 1800 से 1911 के मध्य कभी हुर्इ है। एक सौ ग्यारह वर्षो का अन्तराल मन को उद्वेलित किये रहा। खोज-बीन करते जानकारी मिली आनंद रघुनंदन हस्तलिखित पाण्डुलिपि से - इति श्री महाराज कुमार श्री बाबू साहब विश्वनाथ सिंह जूदेव कृति आनन्द रघुनंदन नाटक सम्पूर्ण समाप्त शुभमस्तु श्री राम, सुदि सुक्रे वौ संवत 1888 (सन 1831) को मुकाम बिजौरी बैठ लिखों।12 तदानुसार इस बात की पुषिट होती है कि विश्वनाथ सिंह ने आनंद रघुनंदन अपने राजकुमार काल में कभी लिखा जिसकी प्रतिलिपि 1831 र्इ0 में किसी ने किया। उनका जन्मकाल है  तिथि बैशाख शुक्ल 14 विक्रम संवत 1848 (1789 र्इ0) अत: 'आनन्द रघुनन्दन का रचना काल र्इ0 1831 के आस-पास होना विदित होता है। 'आनंद रघुनन्दन नाटक हिन्दी एवं संस्—त दोनो सूचियों में प्राप्त होता है किन्तु यह सत्य है कि पहले हिन्दी में ततपश्चात संस्—त अनुवाद हुआ। महाराजा विश्वनाथ सिंह ने सगुण और निगर्ुण की एक वाक्यता प्रतिपादित की ।''13
विश्वनाथ युग में सूफी संत शाह नज़फ अली खाँ का जि़क्र आता है, रायबरेली के पास सलोन गाँव में जन्म लिया जहाँ के 'पदमावत रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसी हैं। खाँ साहब फारसी के ज्ञाता थे और फारसी की एक रचना रीवा की तुरकहटी में बैठ कर लिखी थी 'प्रेम चिंगारी। 14
महाराज जय सिंह —ष्णोंपासक थे और पुत्र महाराज विश्वनाथ सिंह रामोपासक हुए। महाराज रघुराज सिंह कृष्णोंपासक सिद्ध होते हैं। महाराज रघुराज सिंह का जन्म सन 1823 र्इ0 कार्तिक कृष्णपक्ष चार दिन गुरुवार को हुआ। कवि युगलेश ने कहा है ''जस प्रताप मंदिर कियो, विश्वनाथ महाराज, तापर कलसा ताहिको धरयो भूप रघुराज। हालाँकि नींव तो महाराज जय सिंह ने ही रखी और माहौल का भी प्रभाव पड़ा, क्योंकि राज दरबार में कर्इ विद्वान कवि आश्रय पाते थे। इनकी रचनाओं को देखा जाय और देखिये कि कितना विशिष्ट, वृहत और विशद है। समीक्षा आचार्य कुँवर सूर्यबली सिंह ने कहा कि ''महाराज रघुराज सिंह ने जिस मनोयोग से 'रामस्वयंबर में राम कथा गार्इ है उसी उन्मेष में 'रुकिमणी परिणय और 'आन्दाम्बुनिधि में —ष्ण कथा कही है। इस प्रकार उन्होने सिद्धांत और व्यवहार को एक कर दिया है जो मध्यकालीन कवियों में शायद ही कोर्इ कर सका हो।
'आनन्दाम्बुनिधी के बारे में बघेली गधकार रविरंजन सिंह ने लिखा है-''इस ग्रंथ से हिन्दी की एक बड़ी छतिपूर्ति हुर्इ है। इसके पूर्व हिन्दी प्रेमी श्रीमदभागवत की कविता का रसास्वादन करने से वंचित रह जाते थे। महाराज रघुराज सिंह रीतिकालीन प्रवाह में नहीं बहे। देखा जाय तो महाराज रघुराज सिंह मध्यकाल में शुरुआत से अन्त तक छाये रहे। सूरदास एवं तुलसीदास ऐसे दो चार कवि ही होंगे जिनके लिये काव्य साधन और साध्य दोनो था। रघुराज सिंह भी इन्ही में आते हैं, ये भक्त भी हैं और साहित्यकार भी। इनकी रचनायें कुछ एक को छोड़ कर, शुद्ध धार्मिक है। 'गंगा अष्टोत्तर शतक साहितियक स्त्रोत है और इसके जोड़ की एक ही रचना है-पदमाकर की ख्याति को उजागर करने वाली 'गंगालहरी।15
प्राप्त सूचियों के अनुसार महाराज रघुराज सिंह के सर्व ग्रंथों की संख्या 56 तक पहँुचती है। विद्वानों के मत से वह 28 से अधिक नहीं कही जाती है। 'रघुराज विलास लोक साहित्य का अच्छा उदाहरण है। तुलसीदास जी के 'रामलला नहछू और 'जानकी मंगल आदि का जो स्थान है लोक साहित्य में, वही स्थान है 'रघुराज विलास का। उनके बनरा, बधार्इ, होली आदि के पद गाँवों में आज भी सुनार्इ देते हैं।
महाराज रघुराज सिंह के राजकवि अजबेस राम जी रहे, जो फारसी और ब्रज के अच्छे ज्ञाता रहे। कवि अजवेश मध्यकाल को वीर काव्य देने वाले प्रसिद्ध कवियों में से थे। कवि अजवेश भÍ (महापात्र) ने बान्धव गद्दी के महाराजाओं की वंशावली लिखी है। इनके रचे छन्द -
                     संगर समत्थ सजो भूप विश्वनाथ सिंह वीरता को रूप खूब आनन लखात है।
   मारु बजे बाजे गाजे द्विरद दतारे भारे सुभट समूह सावधान दरसात है।।
  विक्रम विहद्द हिंदुवान हद्द अजबेश जय सिंह के नंद के अनंद अधिकात हैं।
 तरकात जात बंधु करकत जात फौज फरकत बाहु बाजी थरकत जात है।।
कवि अजबेश के पुत्र कवि सुखराम जी ब्रज एवं संस्—त के ज्ञाता थे और व्याकरण शास्त्र के पूर्ण पणिडत। ये महाराज रघुराज सिंह के दरबार में रहे। ये ब्रज भाषा में सुन्दर रचना करते थे और कविता में अपना नाम अन्य कवियों की तरह नहीं रखते थे। -
                    आज महाराज की शरण आय अपनी विपत अंगरेजन हू भाखी है।
                   नर नरनाहन सदा ही पातसाहन को विपति परै पै पति बाँधौपति राखी है।।
द्विवेदी युगीन कवि-त्रयी हंै मैथिली शरण गुप्त, अयोध्या सिंह उपाध्यय 'हरिऔध और ठा0 गोपाल शरण सिंह। रीवा के नर्इगढ़ी इलाकेदार ठा0 गोपाल शरण सिंह का सन 1891 में जन्म हुआ। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की —पा से आपने साहित्य में विशेष स्थान बनाया। खड़ी बोली को सजीव, मधुर और सशक्त बनाने वालों में आपका विशेष स्थान है। राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलनों में आपने अनेक स्थानों पर अध्यक्षता की। आपने उच्चकोटि का साहित्य सृजन किया है - माधवी, कादमिबनी, ज्योतिष्मती, संचिता, सुमना, सागरिका, ग्रामिका, आधुनिक कवि, विश्वगीत, पे्रमान्जली, शानित-गीत, मीरा और जगदालोक जो पुरष्—त हुर्इ। 'माधवी घनाक्षरी छन्दों में सरस व माधुर्य गुणों से भरपूर रचनाओं का संग्रह है। आपकी कविताओं में सामाजिक समस्याओं का निरूपण एवं जन जागरण का स्पष्ट स्वर है जो काव्य में अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
रीवा की धरती सदा साहित्यकार प्रसूता रही है और यहाँ के राजाओं द्वारा पोषित। सन 1880-81 में उर्दू लेखक मौलवी रहमान अली ने 'तवारिख-ए-बघेलखण्ड लेखन की शुरुआत की।16 महाराजा व्यंकटरमण सिंह ने हिन्दी को विशेष महत्व दिया और सन 1895 में हिन्दी को राज्य भाषा घोषित किया। महाराजा व्यंकटरमण सिंह के समय इस क्षेत्र (आज का मध्य प्रदेश) का प्रथम स्वतंत्र राष्टी्रय पत्र 'भारत भ्राता सन1914 के बाद महाराजा व्यंकटरमण सिंह के समय में निकला। जिसके सम्पादक श्री बलदेव सिंह थे।17 पणिडत मदन मोहन मालवीय ने इस पत्र की राष्टी्रय भावना और निर्भीकता की बहुत प्रशंसा की लेकिन अंग्रेज सरकार ने पत्र की प्रतियाँ और पे्रस जब्त कर लिया। सन
1918, श्री ब्रजरत्न भÍाचार्य के सम्पादन में 'शुभचिन्तक(सप्ताहिक) प्रकाशित होने लगा। सन 1920-21 के 'रीजेन्सी काल में सारे पत्रों का प्रकाशन बंद करा दिया गया। सन 1930 से 'प्रकाश महाराजा गुलाब सिंह की पे्ररणा से प्रकाशित होना प्रारंभ हुआ इसके सम्पादक रहे श्री नरसिंह राम शुक्ल, म0 अर्जुन सिंह, केशव प्रसाद चतुर्वेदी। गुलाब सिंह के सत्ता से हटने के बाद यह अनियमित रहा। श्री बलवन्त सिंह की प्रेरणा से कुँवर सूर्यबली सिंह एवं यादवेन्द्र सिंह के सम्पादकत्व में साहितियक मासिक पत्रिका 'बान्धव प्रकाशित हुर्इ लेकिन शुद्ध साहितियक होने की वजह से अल्प जीवी रही। श्री जगमोहन निगम भी इस पत्रिका से जुड़े हुए थे। इस क्षेत्र की पत्रिकाओं में कुँवर सूर्यबली सिंह ने सम्पादकीय लेखन और साहितियक समीक्षा की शुरुआत की।
कवि सुखराम जी के पुत्र महापात्र सीतल प्रसाद 'शीतलेश महाराज व्यंकटरमण सिंह एवं महाराजा गुलाब सिंह के दरबार के राजकवि रहे। आप ब्रज भाषा साहित्य के पणिडत थे और उन्होने 'गुलाब गौरव ग्रंथ लिखा जिसे 'गुलाब प्रकाश' भी कहा जाता है।
'शीतलेश जी के पुत्र ब्रजेश जी ने साहित्य शास्त्र का गहन अध्ययन किया। आपका जन्म सन 1871, सिलपरी ग्राम रीवा में हुआ। आपकी गणना ब्रज के आचार्य कवियों में की जाती है। आपके द्वारा रचित ग्रंथों में 'रमेश रत्नाकर, माधव विलास, विरह-वाटिका, सोरठ शतक, अलंकार निर्णय, रस रसांग-निर्णय, शान्त शतक, श्रृंगार-शिरोमणि, मोहन चरित्र माला, विश्वनाथ शरण भूषण, ब्रजेश विनोद हैं।
बख्शी हनुमान प्रसाद जी का जन्म 1872 र्इ0 में हुआ। आपने 'साहित्य सरोज नामक एक अलंकार ग्रंथ की रचना की। आप हिन्दी के अलावा उदर्ू और फारसी के ज्ञाता थे। बघेलखण्ड की धरती साहित्यकारों से अलं—त रही है, मेरा दुर्भाग्य है कि अध्ययन के दौरान स्वतंत्रता पूर्व के कर्इ कवियों के नाम जानकारी में आए लेकिन उनके साहित्य के पुण्य प्रसाद से वंचित रहा।
श्री गोविंद प्रसाद पाण्डेय :जन्म सन 1874। आप संस्—त, उदर्ू और फारसी के ज्ञाता थे। श्री भगवत प्रसाद, कवि राधिकेश जी, कवि मधुर जी, श्री हरिवंश प्रसाद श्रीवास्तव। कवि रामाधीन लालजी खरे : रीतिकाल की परंपरा के सफल कवि थे और प्रचुर मात्रा में साहित्य सृजन किया, लगभग 40 ग्रंथों की। स्वतंत्रता पूर्व काल मेें आप बहुत चर्चित व प्रतिषिठत साहित्य सृजक रहे। आप अपनी काव्य प्रतिभा के कारण ओरछा राजा के राजकवि हुए। इसी क्रम में अभी और साहित्यकार हैं जैसे आचार्य केशव के वंशज श्री श्याम सेवक मिश्र, कप्तान सम्पत कुमार सिंह, श्री बज्रपाणि सिंह 'पविपाणि, कप्तान यादवेन्द्र सिंह, कवि मनोहर सिंह, लाल महावीर सिंह बघेल, सरदार शत्रुसूदन सिंह, कवि हरशरण शर्मा 'शिव, श्री रामभद्र गौड़, श्री माधव प्रसाद और पणिडत चन्द्रशेखर शर्मा। पणिडत चन्द्रशेखर शर्मा का जन्म सन 1894 को रायपुर कचर्ुलियान रीवा में हुआ। आपकी रचनायें कर्इ बार पुरस्—त हुर्इं। कवि शेषमणि शर्मा 'मणि रायपुरी आपके पुत्र हैं। कवि लाल महाबली सिंह बघेल की 'गांधी गौरव रचना प्रकाशित हुर्इ है। कवि परशुराम जी पाण्डेय काफी प्रसिद्ध हैं। आपका बांधव झण्डागान रीवा राज्य के सभी पाठशालाओं में गाया जाता था और 'वह शकित हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डट जावें...,इन्ही की रचना मानी जाती रही है लेकिन 'आजकल पत्रिका अंक नवंबर 2010 में इस कविता के कवि मुरारीलाल शर्मा 'बालबंधु का उल्लेख है। इनकी 'हरिकीर्तन, 'साकेत पथ एवं 'काव्य कलिका है। कवि अमिबका प्रसाद भÍ 'अमिबकेश : आपकी कविताओं में वीर रस और राष्ट्रप्रेम का स्वर प्रधान है। सन1941 में कविता संग्रह 'ज्योति प्रकाशित हुर्इ। श्री लखनप्रताप सिंह 'उरगेश':सन 1916 में जन्म हुआ, 'उल्कापात, 'आभा, 'प्रसाद,'अभिनयशाला एवं 'मानस परिचय आपकी रचनायें हैं। श्री भारत सिंह बघेल : जन्म सन 1905 ग्राम महसुआ रीवा में हुआ। आपकी 'विन्ध्य वैभव, 'बान्धव गान, 'देवतालाब महात्म्य, और 'विन्ध्य के प्राचीन ग्रंथ आदि हैं।
हिन्दी जगत में 'मिश्रबंधु समान रीवा में मान्य रहे हैं गधकार बंधुत्रय लाल —ष्णवंश सिंह, लाल भानु सिंह और लाल दयावान सिंह, साहित्य की हर विधाओं में पारंगत रहे हैं। समीक्षा विधा की पहचान बनाने वाले रहे हैं कुँवर सूर्यबली सिंह। इन्होने गध साहित्य को विभिन्न पाठयक्रमों तक पंहुचाया है।
कुँवर सूर्यबली सिंह परिहार का जन्म सन 1906 ग्राम रायपुर कचर्ुलियान, रीवा में हुआ। प्रो0 आदित्यप्रताप सिंह ने' हंस की उड़ान में लिखा है ''सूर्यबली सिंह ने न तो विश्वनाथ सिंह, रघुराज सिंह, ठा0 गोपाल शरण सिंह को बुर्जुआ कहकर खारिज किया है न दिनकर न अज्ञेय और न मुकितबोध की ही उपेक्षा की है - यहाँ तक कि गध लेखकों और आंचलिक कवियों पर भी मौखिक और लिखित रूप में साहितियक अनुशीलन वे करते रहे हैं।...आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और सूर्यबली सिंह की दृषिट और समीक्षा सृषिट ऐसी निर्जीवता से ग्रस्त नहीं है।...निसंदेह वे आचार्य शुक्ल के उत्तराधिकारियों में से एक हैं, उनका दोष केवल यह है कि वे काशी छोड़ रीवा चले आये। आपने आचार्य लाला भगवान दीन, पणिडत अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और आचार्य केशव प्रसाद मिश्र जैसे दिग्गजों से शिक्षा प्राप्त की। सन 1936 में बनारस हिन्दू विश्वविधालय से स्नातकोत्तर किया।
कुँवर सूर्यबली सिंह की प्रकाशित एवं प्रशंसित रचनायें : 'हिन्दी की प्रचीन एवं नवीन काव्य धारा (सन1936) वि0 प्रा0 हिन्दी साहित्य सम्मेलन रीवा से पुरस्—त, 'जीवन ज्योति, 'राजनीति परिचय, 'हिन्दी कविता, 'आधुनिक मराठी साहित्य, 'विधापति एवं 'सुभाषित। आचार्य शुक्ल —पण रहे हैं किसी लेखक की प्रशंसा करने में किन्तु सूर्यबली सिंह की —ति 'हिन्दी की प्रचीन एवं नवीन काव्य धारा में उन्होने  —पणता का त्याग करते लिखा है ''हिन्दी की प्रचीन एवं नवीन काव्य धारा में सूर्यबली सिंह एम ए ने दोनो धाराओं की विभिन्नता प्रकट करने वाली बहुत सी  विशेषताओं का अच्छा उदघाटन किया है। उन विशेषताओं की ओर ध्यान देने से दोनो प्रकार की कविताओं के स्वरूप का परिचय और वर्तमान कविता की भिन्न-भिन्न शाखाओं का आभास मिल जाता है। हमारे काव्य क्षेत्र में ज्यों ज्यों अनेक रूपता का विकास होता जायेगा त्यों त्यों ऐसी पुस्तकों की आवश्यकता बढ़ती जायेगी। उक्त पुस्तक में लेखक ने विभाव पक्ष, भाव पक्ष, कला तथा भाषा के आधार पर हिन्दी कविता का अध्ययन प्रस्तुत किया है। आप संगठन वादी कविता के पक्षधर नहीं है।
कुँवर सूर्यबली सिंह सन 1936-37 साहित्य समीक्षा संघ बनारस,  सन 1936-45 रघुराज साहित्य परिषद के प्रधान मंत्री, बांधव मासिक पत्रिका रीवा (सन 1942-44) के सम्पादक और स्वतंत्रता आन्दोलन (सन1942-44) में जेल यात्रा की। अध्ययन, लेखन एवं अध्यापन जीवन पर्यन्त रहा।
पदमभूषण शिवमंगल सिंह सुमन की बड़ी बहन कीर्ति कुँवरि का विवाह सन 1907 को महाराज व्यंकटरमण सिंह से हुआ, लेकिन सन 1918 को महाराज का देहान्त हो गया। महारानी ने अपना वैधव्य —ष्ण भकित और साहित्य को दिया। आपने कर्इ ग्रंथो का सृजन किया : 'श्री राधा—ष्ण विनोद भजनावली, 'भक्त प्रभाकर, 'कीर्ति रमण,'ज्ञानदीप,'कीर्ति सुधा,'श्री जगदीश कीर्ति शतक,'कीर्ति लता,'कीर्ति अष्टक,'कीर्ति शिरोमणि,'कीर्ति बहार,'कीर्ति निधि','कीर्ति त्रिवेणी,'श्रीबद्रीश, 'कीर्ति चिन्तामणि,'कीर्ति कौमुदी, 'कीर्ति जया,'कीर्ति किरण,'कीर्ति माधुरी, 'कीर्ति भाष्कर, 'कीर्ति गोविन्द,'कीर्ति प्रकाश,'कीर्ति गंगे,'कीर्ति पुष्पन्जली,'ज्ञानमाला,'कीर्ति प्रमोद,। आपकी रचनायें भ्कितरस प्रधान हैं। कुछ पंकितयाँ :
''यह कीर्ति अधीर पुकार रही सुनि लेहु —पा करि हे बनवारी,
आपन जान दया करिये हम तो निशिवासर शरण तुम्हारी।
''जब से उल्फत ने सताया जी कहीं लगता नहीं
 क्या करुँ उनके बिना बैचेन हूँ निशि याम री।
बघेलकाल राज्य विलियन सन 1948 तक के रीवा राज्य में साहित्य के प्रसिद्ध और भी हस्ताक्षर हैं। हिन्दी, उदर्ू, फारसी और अंग्रेजी के ज्ञाता, इतिहासकार प्रो0 अख्तर हुसैन निज़ामी जिन्होने इतिहास के धुंधलाये आइनों को साफ किया है। सन 1919 में 'रीवा राज्य दर्पण के लेखक श्री जीतन सिंह, 'रीवा राज्य का सैनिक इतिहास (सन 1937) लेखक- लाल जनार्दन सिंह और गुरू रामप्यारे अगिनहोत्री 'रीवा राज्य का इतिहास एवं प्रकाशित काव्य ग्रंथ 'प्रलाप।
महाराज व्यंकटरमण सिंह के दरबार में झुरवा अहीर मौजा देवखर त्यौंथर तहसील रीवा ने 'नैकहार्इ केर बिरहा सुनाया था जो शायद लिखित तो नहीं पर बहुत चर्चित हुआ।18 गध साहित्य में संख्या कुछ कम नहीं थी, श्री सिद्धविनायक द्विवेदी(उपन्यासकार), कथा साहित्य के शिल्पी रहे हैं लाल यादवेन्द्र सिंह माड़ौ रीवा। कवि कुँवर सोमेश्वर सिंह : जन्म सन 1910, आपके काव्य ग्रंथ हैं-'रत्ना, 'दृगजल, 'सरोज और ख्ुासरो। कवि सोमेश्वर सिंह सुप्रसिद्ध हिन्दी कवि ठा0गोपालशरण सिंह के सुपुत्र हैं।
बैजनाथ प्रसाद 'बैजू : जन्म सन 1910 को हुआ। आपका रचना काल सन 1935 से प्रारंभ होता है। सूकितयों का एक संग्रह 'बैजू की सूकितयाँ के नाम से सन 1940 को प्रकाशित हुआ। कुँवर सूर्यबली सिंह ने बैजू को उन गिने चुने कवियों में माना है ''जो सामान्य भाषा को अपना कर अपनी आवाज सर्व सामान्य तक पंहुचाने वाले हैं। रिमहीं (बघेली) की यह रचना भाषा की सशक्तता और छन्द चयन के कारण विशेष है। कवि ने अपने अनुभवों को व्यक्त करने का अनूठा तरीका अपनाया है। बड़ी खूबसूरती से प्रचलित देशीय मुहावरों का प्रयोग हुआ है। कुल मिलाकर आप रिमहीं के जनप्रिय कवि हैं।
 आइए अब कवि शेषमणि शर्मा 'मणि की बात करें। इनका जन्म रायपुर कचर्ुलियान में सन 1916 को हुआ। इन्हे सन 1953 में विन्ध्य प्रदेश शासन से प्रबंध —ति 'कैकेयी पर व्यास पुरस्कार प्रदान किया गया था। अन्य रचनायें :'मणिकिरण, 'द्वितीया,'बागी की डायरी,'अन्तध्र्वनि,'क्रानित की चिनगारियाँ और 'जग-जीवन है।
अवधी को जायसी और तुलसी मिले। बघेली को बैजू और सैफू आदि।19 पूरा नाम सैफुद्दीन सिद्दकी 'सैफू : जन्म 1 जुलार्इ 1924, प्रकाशित काव्य संकलन 'दिया बरी भा अजोर, 'भारत केर माटी की जानकारी मिली है। डा0 भगवती प्रसाद शुक्ल के शब्दों में ''सैफू सच्चे अर्थों में बघेली के समर्थ और प्राणवान कवि हैं।      ''बिन पखना मेंड़राय सरग मा, रहय लपेटे सूत।
               सैफू कहँय बताबा ककऊ, कउन आय इया भूत।20
यहाँ की धरती बाणभÍ की कार्यस्थली है। क्या राजा क्या आम जन, हिन्दी, संस्—त, उदर्ू, फारसी, 'अउ बघेली में सृजन करने वाले कम नहीं थे, न हैं, न होंगे। 000      
----- संदर्भ ------
1.कुँवर सूर्यबली सिंह :मध्य युगीन साहित्य को रीवा की देन ।
2.डा0 धीरेन्द्र वर्मा : हिन्दी भाषा का इतिहास।  
3. प्रो0 आदित्य प्रताप सिंहरविरंजन सिंह :अजीत फतेह बघेलखण्ड का आल्हा की साहितियक पृष्ठ भूमि से।
4. अजीत फते रायसा : पं. रामभद्र गौड़।
5. रविरंजन सिंह : 'रीवा तब अउर अब' पृ.21।
6. महाकवि ब्रजेश : प्रो0 —ष्ण चन्द्र वर्मा पृ. 11-12।
7. बिपिन बिहारी मिश्र :विशाल भारत,फरवरी1946 ।
8.हिन्दी नाटक उदभव और विकास पृ. 166।
9-10-.कुँवर सूर्यबली सिंह :मध्य युगीन साहित्य को रीवा की देन।
11. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल-हिन्दी साहित्य का इतिहास।
12. असद खान :बघेलख्ण्ड की स्थापत्य कला।
13. कुँवर सूर्यबली सिंह :मध्य युगीन साहित्य को रीवा की देन।
14. रविरंजन सिंह : प्रो0 अख्तर हुसैन निज़ामी की डायरी।
15.कुँवर सूर्यबली सिंह :मध्य युगीन साहित्य को रीवा की देन।
16. डा0 दिवाकर सिंह :बघेल राजपूत की पाण्डुलिपि।
17.श्रीमती स्नेहलता तिवारी :बघेलखण्ड की पत्र पत्रिकायें
18. प्रो0 अख्तर हुसैन निज़ामी : अजीत फते नायक रायसा बघेलखण्ड का आल्हा पृ.221।
19. डा0 सूर्यभान सिंह :बघेली व्याकरण
20.उत्तर- पतंग

                                                           

Thursday, August 25, 2011

Anna hajare

हम अपने धर के कूड़े को निकाल कर सड़क पर फेंकते हैं।कानून में अपनी सहूलियत तलाशतें हैं। हम ही उन्हे चुनते हैं हुकूमत के लिये। सढ़क पर गढ्ढे और उनके पास के मिट्टी पत्थर के ढेर से बच कर निकलते हैं। अपनी जिम्मेदारी, अपनी ताकत से अनजान हम केवल चिल्लातें हैं अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं।

Tuesday, July 12, 2011

अतिथि सत्कार

आज मेरे बछपन के अभिन्न मित्र को आना है। खुश होना था पर इस बात की चिन्ता है कि उसकी आर्थिक स्थिती बहुत अच्छी नहीं है, ..नहीं उससे मुझे कुछ भी लेना देना नहीं है पर....।

पिछले महीने एक दिन मेरे घर पर एक मित्र का आगमन हुआ। मैने सभी से उसका परिचय कराया परिवार के सभी जन खुश हुये, काफी बातचीत हुई। पत्नी के विशेष आग्रह पर मित्र खाने पर रुक गया। अपने-अपने सुख दुख की बातें हुईं। मित्र के बारे में पत्नी को यह मालूम था कि वह काफी सम्पन्न है और मेरी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। पत्नी ने मुझसे कह रखा था कि उससे कुछ मदद के लिये बात करना। खाने के टेबल पर तैयारी होने लगी, पानी, सलाद, अचार इत्यादी। शायद ‘स्वीट डिश’ के लिये कुछ नहीं था। पत्नी बच्चे से ‘बेटा जाओ जल्दी से मिठाई...नहीं ऐसा करो कि कोई अच्छी वाली आइसक्रीम ले आओ’। मझे भी अच्छा लगा कि पत्नी अतिथि सत्कार में रुचि ले रही है। हम ‘डायनिंग टेबल पर आ बैठे। खाना खाते हुये बातें होने लगी, मित्र ने बताया कि इस समय बह अत्यधिक परेशान है व्यवसाय में लगातार घाटा होने की वजह से और साथ ही बैंक आदी के कर्जों ने उसे बिलकुल दिवालिया बना दिया है। मुझे दुख हुआ कि आमदनी तो बढ़ नही रही महंगाई बढ़ती जारही है जिससे हम मध्यम वर्गों को अपने अस्तित्व के लिये काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। मौजूदा सरकार जनता पर टैक्स का भार बढ़ाती जा रही है इस बिना पर कि फलां फलां पर घाटा उठाना पड़ रहा है। सरकार को लाभ हो ओर जनता को परेशानी ये बात मेरी समझ से बाहर है। खैर .... लगा कि चलो हममें अन्तर नहीं है। हम लोग खाना लगभग खा ही चुके थे। मै अब इंतजार कर रहा था कि आइसक्रीम परोसी जायेगी तभी पत्नी की हल्की सी आवाज आई ‘रहने दो खाना खाने के जुगाड़ में आया है।’ हम होंगे कामयाब।

Sunday, June 12, 2011

Bagheli drama



दुःख होता है, बहुत तकलीफ होती है कटे पेड़, नंगे पहाड़, सूखते नदी नाले,दम घोंटू हवा, मुर्झाती हरियाली देखकर। क्या करें कि पूरा विश्व पुनः हरा भरा हो जाय। क्या अविष्कार करें जो बदल दे आदमी के दिमाग को और वे पर्यावरण को प्यार करें, सहेजने लगें। पानी का मोल जाने।
जंगल कम हो रहे हैं, जनसंख्या बढ़ रही है। परिणाम दस्तक दे रहा है। आज हम वातानुकूलित कमरे में भौतिक सुख संसाधनो (जिनसे पर्यावरण प्रभावित होता है) का उपयोग करते हुये भी चाहते हैं कि हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहे। बार बार दुहराना जरूरी नहीं कि आज हम क्या भुगत रहे हैं और आगे क्या होगा। कोई अवतार नहीं लेगा। अभी भी समय है चेत जायें।
पर्यावरण संरक्षण के लिये जो भी जरूरी हो किया जाय। गाँव एवं ग्रामीण, उन्हे जगाना है, समझाना है। उन्ही की बोली-भाषा में। अभी हमने पर्यावरण संरक्षण की भावना जागृत करने के लिये रिमही बोली (बघेली) में नाटक तैयार किया है। आगे भी कई बोली-भाषा में प्रयास किये जायेंगे। बहुत जरूरी है, सभी लोग जाने कि जंगल न होने से और पानी का संरक्षण न करने से किस तरह की परिस्थितियाँ निर्मित हो सकतीं हैं।
हमें जीना है। हमें स्वच्छ पर्यावरण चाहिये। सबके साथ बुद्धि, बल एवं भावना है। आइये प्रयास तो करें। हम होंगे कामयाब।

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विन्ध्य क्षेत्र का छोटा सा सामान्य गाँव, जहाँ अभी सरलता, सज्जनता बची है। मिटृी धूल के रास्ते हैं। गिने चुने पेड़, कई कुयें पर सूखे हुये। गाँव से काफी दूर एक बहुत गहरा कुआँ है।
गीत गाते हुये कोरस का दृश्य
गीत:- पानी का न अइसन बहाबा सब कोऊ आगे अबा
हमार भाई पानी बचाबा-2
अहुर बहुर के आये बदरा बिन बरसै भागत है बदरा-2
सूखी भुईयाँ पेड़ झुराने पिआसे मरत हैं गोरुआ सारे-2
चिरई चुनूगुन पिआसे मरत हैं-2 नहीं बरसत है पानी
पानी है हमार जिनगानी हमार भाई पानी बचाबा
पानी का अईसन न बहाबा हमार भाई पानी बचाबा ...
जंगल नसाने बिरबा हेराने, कुआँ तलैया नदिया झुराने-2
पेड़ ना काटा मेड़ बनाबा, पानी का भुईं मा सोखाबा-2
सब कोऊ मिल के पेड़ लगाबा इया धरती का स्वर्ग बनाबा
खेत मा जब होई पानी तब होई सुखी प्रानी
हमार भाई पानी बचाबा

(प्रथम)

सुबह हो गई है, धूप तेज होने को है। थकावट उतार कर चिड़ियाँ पुनः व्यस्त हो गईं और उनकी चहचहाने की आवाज नैसर्गिक संगीत उत्साहित कर रहीं हैं। एक छोटा सा गाँव, धूल भरे रास्तों से होता हुआ एक वृद्ध धीरे धीरे रेंगता हुआ चला जा रहा है। एक महिला घर का दुआर ‘बटोरती’ हुई। दरवाजे से 8-10 वर्ष का एक बालक जाँघिया एवं छोटी सी बिना बटन की बुशर्ट पहने हुये आता है ....

नन्हे:-अम्मा..पानी दइ दे .. ऐ अम्मा पानी दे न (रोता है)

तेरसी:- लइ ले रे, हुअन घिनौची मा गगरी है देख ओमा पानी होई,

नन्हे:- नहीं तैं दइ दे

तेरसी:- देखते नहीं हम बटोरित हैन

बालक पानी रखने की जगह (घिनौची) जाता है। धीरे धीरे मटकी झुकाता हुआ अन्त में पूरा औंधा लेने के बाद पानी की कुछ बूंदें गिरती हैं, बालक झुंझलाते हुये कहता है..

नन्हे:- पानी नहीं आय ( कहते ही मटकी गिरकर फूट जाती है। तेरसी की आवाज: का किहे रे)

तेरसी:-(आती है) फोर डारे, हे भगमान (मारती है बच्चा रोने लगता है। वृद्ध की आवाज आती है, कोउ है घरे मा..ओह)

तेरसी:-हाँ...को आय अइत हैन (बाहर आती है तभी वृद्ध सिर की अंगौछी डेहरी के बगल में ऊँचे चबूतरे जैसे स्थान पर रख उसी पर बैठ जाता है) अई बइठी बाबा (खाट बिछाती है जो वहीं पर खड़ी की हुई थी)

बब्बा:- होइगा बिटिया.. बइठ त हैन ( उठता है और खाट पर बैठ जाता है, तेरसी भीतर कम्बल लेने चली जाती है )

तेरसी:- उठी येही बिछाय देई, निकठहरे काहे बइठ हैन।

बब्बा:- होइगा..अपना काहे परेशान होइत हैन (उठता है)

तेरसी:- बाबा अपना से हम बहुत का छोट हैन, हमहीं अपना न कही (कम्बल बिछाती है) आराम से बइठी। कहाँ से अबाइ भय है?

बब्बा:- पासै के गाँव से..बहुत पिआसे हैन बूटू पानी पिआय देया।

तेरसी:- पानी ! (शर्म व संकोच) अब का बताई, हमरे हिंया पानिन नहीं आय।

बब्बा:- पानी नहीं आय ! व है तो कुइयाँ

तेरसी:- हँई तो कइकठे कुइयाँ पर सबै सुखान हँई। चार कोस हींठे त पानी पाबै, फेर आज पानिन के कारन नन्हे के सबेरेन सबेरे कुटम्मस होय गय अउर गगरिउ फूटि गय

बब्बा:- होइगा, त कउनौ बात नहीं।(चिन्तित सा उठकर चलता है) कउनौ दुआरे त पानी मिलबै करीतेरसी:- (बच्चे से) जा दादू फुइया का बताय दे पानी लेय चले का है, सबका जोर लें (बच्चा जो बाबा के आने से चुप था पुनः रोने लगता है) जा बेटबा (पुचकारते हुये) एक्कौ पानी नहीं आय

(वृद्ध धीरे धीरे चलता हुआ दूसरे दरवाजे पर जा कर आवाज लगाताहै।)
बब्बा:- का एक लोटबा पानी पिये का मिल जई, पिआसन मरित हैन
अन्दर से आवाज आती है ...देखा हो को आय , दुआरे ठाड़ पानी माँगत है। एक व्यक्ति लोटा में पानी और एक कटोरी जिसमें गुड़ है लिये बाहर आता है।
अधेढ़:- अइ भितरे कढ़ि अइ (बरामदे में आमंत्रित करता है जहाँ खाट बिछी है) बइठी हम पानी लय अइत हैन। भला पानी काहे न मिली।
बब्बा:- ( पानी का लोटा ले लेता है, कटोरी से गुड़ की डली उठा मँुह में उालता है) जय हो अपना केर हमार परान तो राखि लिहेन, बहुत पिआसे रहेन। कइयेक कुँअन मा देखेन, पानी नहीं पायेन येसे अपना का तकलीफ दिहेन। (पानी पीता है तभी तेरसी का आगमन हाँथ में लोटा लिये हुये है)
तेरसी:- कोऊ पानी पिये का माँगे त कष्ट नहीं होय कष्ट होत है नाही करै ते
अधेड़:- कइसन तेरसी, बड़े बिहन्ने लोटबा लइके का होइगा ?
तेरसी:- अरे जीजा पानी चुकिगा है, गगिरिउ फूटि गय औ नन्हे जिऊ का लगाये है। का बहिनिउ चलहीं पानी लेय?
अधेड़:- अहाँ न जइहीं, बिहन्नेन लय आबा ग है। भितरे कढ़ि जा बात कइ ले। (वृद्ध बचे पानी से चेहरा धोता है) अरे!..होइगा (पानी के अपव्यय से क्ष्ुाब्ध है) कहाँ रहाइस ही, कइसन पधारेन? धय देई (बर्तन रखने की जगह बताता है। वृद्ध लोटा रख आ कर खाट पर बैठ जाता है। चेहरे पर संतुष्टी का भाव है)
बब्बा:-( चेहरा पोंछते हुये) अपना के आगू के गाँव पार गोरगाँव मा हमार समधिआउर है। समधी लकबा मारिगें हैं उनहिन का देखै जइत लाग हैन।
अधेड़:- अरे अब घाम होत लाग है, जेउनार कय लेई ठण्डे ठण्डे कढ़ि जाबै।
बब्बा:- ध्न्नि हैन दादू , अपना ध्न्नि हैन। अब हम बूढ़न का कोऊ नहीं पूँछै, न परेशान होई हमहीं कढ़ि जाय देई (उठने का उपक्रम करता है तभी भीतर से तेरसी आ जाती है)
तेरसी:-हाँ जीजा इया लेई, गंदगी फैलाबै के लाने (तम्बाखू की थैली देती है) लेई

अधेड़:- का तेरसी, का लेई, बहुत हरबरियाने है। आबा, हमरौ दरबार होय जाय (अचानक वृद्ध को देखता है झेंप जाता है) बोली मजाक के रिस्ता है हमार।

तेरसी:- गारी का सधाने है का जीजा (हँसती है) नन्हे पिआसा है औ पानिउ लय आबै का है नहीं त बताइत। फेर अइत हैन ठीक है (चली जाती है)
बब्बा:- न दादू एक बात पूँछी , नागा त न मानब।
अधेड़:- अरे नागा काहे मानब , पूँछी न (सुपाड़ी काटता है)
बब्बा:- हिंयन येतने कुआँ, तलाब हैं तबौ पानी केर दुर्घट है।
अधेड़:- हाँ हैं तो। पय सब जे कबौ जेठ बैइसाख मा गड़बड़ात रहें ओ अब कातिक तक मा जै राम जी करत सुखाय जात हैं। अब गामै मा एकौ कुआँ ईंदारा नहीं जेमा पानी होय। गाँव के बहिरे एक बगइचा है बहुत पुरान कम ते कम डेढ़ कोस मा, ओमा पानी रहत है। इया गाँव के उहै ते निस्तार होत है। ह लेई इया हाल है हमरे गाँव के।
बब्बा:- अइसन बाति आय उहै हम कही कि...(श्यामलाल आता हुआ दिखाई देता है)
अधेड़:- का हो नेताजी काहाँ केर दउड़ा है ? 
श्यामलाल:- य पानी केर पंचाइत, रोज उठ बिहन्ने झंझट। सहर जइत हैन, कलेक्टर से मिलय , गाँव में पानी नहीं है डाला से या टेक्टर से पानी पहुँचाया जाय।
अधेड़:- हाँ हो तुम्हिन त है हियन बेबस्था करय बाले, जा देखा का कहत है कलक्टर। (श्यामलाल चला जाता है) इनखर येतनै काम है। (इसी समय हीरालाल सायकल पर रस्सी लिये वहाँ से निकलता है) ए हीरालाल का हो रसरी कमत है का ?
हीरालाल:- (रुककर एक पैर नीचे रख, मुड़ कर) थोड़कौ अबेर होय जाय त कम पड़ै लागथी, येसे सोचेन कि लय चली काहे कि....
अधेड़:- अच्छा-अच्छा ठीक है होय आबा
बब्बा:- सब काहे मा बिल्लियान हैं ?
अधेड़:-पानी लेय जाय रहे हैं।
बब्बा:-त, कउन बड़ी बात है।
अधेड़:-हियन के लाने बड़िन आय। एक तो दूरी बहुत है दूसरे पानी बहुत गहिरे है। अइसन नहोय कि वहाँ पँहुच के कउनो दिक्कत होय जाय। का कही राम, (दुःख से उसांस भरकर) अब हमार गाँव पानीदार नहीं रहा निपनिया होयगा है।
बब्बा:-अइसन काहे भा? हम अपना के गाँव होत लड़िकइन ते आबा जाही करत रहे
आयन हैन। तबै लोटा डोर लय के चलत रहेन। हर गाँव मा कुआँ लबलबान रहत रहें,
अधेड़:- अइसन तबाही पहिले से होत त का हियन गाँव बसत। जना पुरिखा होसियार रहें जउन पुरान बगइचा मा कुआँ खोदाय दिहिन तै। उहै आज सबका जियाये है। न तो पहिले कस जाड़ होथै औ न पहिले कस बरसतै आय।
बब्बा:- सोची भला अइसन काहे भा, पानी काहे हेरान जात है ?
---000---
(व्दितीय)
रास्ते में लोग चले जा रहे हैं। महावीर और बुद्धा मोटी लाठी में रस्सी का बण्डल काँधे पर लादे हैे। हीरालाल सायकल पर रस्सी रखे हुये है। फूलमती, तेरसी, सेमकली रानी रतिया सभी दो-दो मटकी रखे हुये हैं। बातकही हो रही है।
फूलमती:- न रे रतिया एक ठे गगरी अऊ लइ लेते
रतिया:- ओइसै थके जइथैन औ दुइ ठे रखे त हैन।
फूलमती:- तोरे हियाँ त पानी चुकिगा रहा, का चार बेर अइहे-जइहे।
रतिया:- कम कम पियब औ दुई जने त हैंन, होय जइ।
बुद्धा:- सही आय जियादा न पियत जया नहीं त सब पियक्कड़ कहिहीं (हँसता है साथ सब हँसने लगते हैं। श्रम को भुलाने के लिये हँसी मजाक का सहारा अच्छा होता है)
सेमकली:- इया पानी का बेढ़ सकाय लागत है जिउ न रहि जई। बाबू जनतैं त काजय न करउतें हिंयन।
महावीर:- गाँव के कुआँ तलाबन मा बेढ़ सकाय गा है तैं काहे अपजस लेते है।
तेरसी:- अब कहाँ काज होत है, उआ सेमलाल बइठय नहीं आय।
सेमकली:- काहे भउजी?
तेरसी:- अरे उआ गाँव के बिटिया से खूबै नैन मटक्का भा, बिटिया के घर बाले काजौ का तैयार होय गा रहें। हियन के दिक्कत जानिन त नाहीं कय दिहिन के पानी बिगुर मर जई बिटिया हमार।
सेमकली:- ठीकय भा
फूलमती:- काहे रे, सेमलाल से तोर कउनौ जुगाड़ है का, खुसी काहे भय तोही?
सेमकली:- का भउजी तुम्हऊ..अरे हम उआ बिटिया के लाने कहे हैन ओकर जिउ बाँच।
सजीवन:- येहिन से सेमलाल उठबिहन्नेन सहर भागा जात है के सरकार पानी केर परबंध करे औ ओकर काज होय जाय।
तेरसी:- बिटिया त चाहत है कि काज होय जाय निबाह कय लेब, पय बाप महतारी कहत हैं कि पहिले पानी...।
रतिया:- काहे अपनेन गाँव भरे मा इया दिक्कत है?
फूलमती:- अरे नहीं रे (दुःख से) अब त सबै जागा पानी के दिक्कत है पय उनके हियाँ निस्तारी कुआँ कुछ नियरे है।
सेमकली:- हाँ ईं बताउत रहें इनके ननिऔरे मा परसाल बहुत दिक्कत भय तै। कहूँ बाहर ते डालन मा पानी आबत रहा। हीरालाल:- अब बरखै ठीक से नहीं होय न भुइयें जिलकै।
बुद्धा:- धरतिन माता के पिआस नहीं बुझति आय हमहीं कहाँ ते मिलै पानी। (सब अपनी कें पें लगाये अपनी दुरदशा पर रोते हुये कुयें तक आ पहुँचे। थके चेहरे, परेशानी से लदे हुय,े सामान रखते हैं। कुआँ वीरान जगह बगीचे में है)
महावीर:- जिउ त निकर गा भाई, येसे अच्छा होत कि बरदा नाँध के गाड़ी लय अइत।
सजीवन:- हाँ भाई ठीक कहे पहिले नहीं सोचेन पय आगे से अइसै करब। का कहूँ से डामर बाले डराम न मिल जइहीं ओही में पानी भर
सेमकली:- सही आय हमरौ पंचन के जिउ बचै, बरदा सेतै पड़े हैं।
हीरालाल:- चल पहिले गघरी भर, फेर डराम भरे। (बालटी में रस्सी बाँधता है और कुयें में डालता है। बहुत सारी रस्सी का बण्डल धीरे धीरे कुयें में जाता है, फिर पानी खींचता है।)
बुद्धा:- सही इया तो बहुत दंतनिपोर है। आराम से, येतना महँग पानी छलकि न जई।
हीरालाल:-( पानी खींचते हुये) गोरुअन केर भाई बड़ी दुरदसा है, छोटुआ सकारेन
ए सजीवन आउ मदद कर भाई।
सजीवन:-(अपना हाँथ दिखाता है, हाँथ छिल गया है) देख भाई हम काल खीचे रहेन। एक ठे
हीरालाल:-
तेरसी:-( बुद्धा आगे बढ़ता है तो रोकती है) तुम पंचे बइठत जा हमहिन पाँचे खींच लेबै। येही देखा नाम महाबीर है औ एक बलटुइया मा आँखी कढ़ि आबथी।
महावीर:- (हँसते हुये आता है) अरे भउजी कहि ले पय थोरी मुसकी मार के कह तो हम इया कुअउना का उठाय के गाँव मा धरि देई।
सजीवन:- अरे ये नइना मटकाय दें तो अच्छे अच्छे पानी भरय लाधैं।
फूलमती:- चला ठिठोली रहे देया, य नहीं कि गाँव के कंुइयन का झार लेंय।
हीरालाल:- कइयक बेरि त झारेन अब एतनी गहिर औ सांकर होय गईं हैं के घुसतै नहीं बनै।
( सब सामान समेटने लगते हैं। इस तरह लदे जा रहे हैं कि मानो मनुष शरीर नहीं मशीन हो)
रतिया:- इया दिक्कत इया झंझट दूर करय के उपाय सोचा नहीं त हम सब छाँड़-छूँड़ भागि जाबै। (गुस्से और खीज भरे शब्दों में दुःख ज्यादा है)
हीरालाल:- तैं काहे भगिहे, चला सब इया गाँव छोंड़ उहाँ चली जहाँ पानी मिलै।
बुद्धा:- ठीक कहे भाई, खेती किसानी कुछू हइये नहीं आय, बरखा होतै नहीं, का करब हिंयन रहिके, उहाँ चली जहाँ पानी मिलै।
सजीवन:- चला सब कोऊ गंगा किनारे चली उआ कबौ न सुखई।
महावीर:- गंगा किनारे, तुम्हार पुरिखा का पट्टा कराये हैं जौन गंगा किनारे जइहा। एक बेरी हम फूल सेराबै गयन तै बड़ी भीड़, समाबै न करब।
सजीवन:- सहर के हाल न पूँछा। पर साल हम भुगति चुके हैंन। सतना गयन तै कि मजूरी मिली कम से कम पानी तो मिली पय भाई इहौं से जियादा खराब हालत है हुआँ। डाला टेकटर
से पानी
बुद्धा:- सरकारौ केर फदीहत है। पानी मिलै नहीं त का करैं ( इसी समय श्यामलाल सामने से आता हुआ दिखाई देता है) नेताजी पधार रहे हैं।
हीरालाल:- का भाई सहर जात रहे हरबिन लउटि आये।
श्यामलाल:- का करी भाई लारी निकरि गय तै (चला जाता है)
बुद्धा:- नेतागिरी के घोड़ मा चढ़ा है, कुछू करय धरय नहीं बस सी ओ कलक्टर बतात है।
हीरालाल:- नहीं अपने कस लिखा पढ़ी करत रहत है।
सजीवन:- लिखा पढ़ी से का पानी बरसी।
महावीर:- चल बढ़े चल भाई, नहीं तो जेउनार बियारी साथै होई।तृतीय)
खड़ी दोपहर है। हीरालाल, महावीर, रतिया, फूलमती अधेड़ के घर के सामने से गुजरते हैं। बहुत थके हुये हैं। औरतें एक मटकी सिर पर और एक बगल में, कमर पर रखे हुये हैं हीरालाल सायकल पर रस्सी एवं दो डब्बे लटकाये है। महावीर काँधे पर रस्सी का बण्डल और हाँथ में पानी से भरी बाल्टी लटकाये हुये हैं।
अधेड़:- (पुकारते हुये) आबा सुस्ताय लेया।
हीरालाल:- अइत हैन दद्दी, सब रखि अई फेर बैइठब। (सब चले जाते हैं)
बब्बा:- हिंयन पानी के बहुतै तकलीफ है दादू पय ‘सब दिन होय न एक समान’। सब दिन लिहेन अब हमहीं चाही के अपने दाता के कुछ तो सेवा करी।
अधेड़:- पानी निता जौन कही , ओइसय पूजा, यज्ञ, मानस इहाँ तक बली घलाय दिहेन, अपने कई से सबै कराय चुकेन। बारिसै नहीं होय, पय बताई का कीन जाय।
बब्बा:-(कुछ सोचता हुआ उठता है, बरामदे से निकल बाहर थूक कर वापस लौट बैठ जाता है) महतारी के नाई हम सबका पालिस औ हम हुसियार का किहेन, ओहिन का निपोरय लागेन। अपनेन धरती अपने महतारी के लाने का कुछू करेन..आँय।
(तेरसी का आगमन। हाँथ में एक छोटी सी थाली लिये है, जो
पागल:- (चुनौती सा देता हुआ) सब मरोगे। सबके बुद्धी का लकवा मारिगा है, सब मरोगे (हँसता है) ये देखा सब झुर्रै झर्र झुर्रे झूर (आसमान, धरती निहारते बाँह फैलाता है और दुखी हो कर जमीन पर बैठ जाता है। तेरसी का प्रवेश )
तेरसी:-आय गा झुर्रे झूर इहौ..अच्छा चली कुल्ला कय लेई। जेउनार के ठौर लगिगा है।
अधेड़:- तुम्हरे हियाँ कोउ बनबइया है का, काहे से कि तुम तो पानी का गय रहे फेर
तेरसी:- बहिनी दार डारिन तय, कहिन के आय जया, अपना के माथे नहीं। का कबहूँ बोलायेन हाँ नही ंतो
अधेड़:- अरे बोलाय त लेई पय कोदई केरि डेर लागथी। अगर तुम सोचिन लिहे है त तो फेर ठीक है, सबसे निपट लेई मनई।
तेरसी:- मूड़े में एकौ बार न बचिहें समझे, खाय के जूना गारी ते पेट भरे का है का, चली उठी।
(सब हँसते हैं। तनाव के बादल छंट जाते हैं। वृद्ध भी मुस्कुराते हुये उठ खड़ा होता है तीनो व्यक्ति भीतर चले जाते हैं। पागल अपने स्थान पर खड़ा हो जाता है।)
पागल:- उठो खड़े हो जाओ। तैयार हो जाओ (जैसे किसी को बलपूर्वक आदेश दे रहा हो) तैयार होइजा, काटि डारा जंगलन का, फोरि के मेड़ तलाबन का खेत बनाय डारा। सब होइगें हैं हुसियार, निपोर देया वायुमण्डल, नसाय देया हरियाली, पूरे पृथ्वी मा टिड़ी के नाई मनइन मनई छा जायें। (हिकारत से) पानी नहीं मिलै, खेती नहीं होय..सारे सब..झूर्रै झूर। चेत ले (अंगुली से दर्शकों की तरफ इशारा) नहीं तो मरेगा। सुना, गुना औ समझि लेत जा।
(हीरालाल, बुद्धा और सजीवन आते हैं)
महावीर:- चुप रह रे, इया कहाँ से आयगा (हिकारत से) भाग ओं कई।
हीरालाल:- रहे दे भाई रहे दे (पागल से) चुप चाप बइठ जा, हल्ला न करे , ठीक है।
(भीतर से अधेड़ एवं वृद्ध दाँत खुरचते हुये बाहर आतें हैं)
बब्बा:- घरे से कलेबा कइ के निकरे रहेन। खूब पायेन। इंदरहर औ रिकमच त बहुतै बढ़िया रहें, खूब खाय लिहेन (संतुष्टि)
अधेड़:- आराम कय लेई।
बब्बा:- दादू धन्नि हैंन अपना, नहीं अब कढ़ि जाय देई, अबेर होथी।
हीरालाल:-होइगा अब आज रुकी, बड़े सकारे हम पहुँचाय देबै।
पागल:- सब झुर्रै झूर, रोका रोका नहीं त सब मरिहा (चिल्लाकर बोलने से सजीवन चैंक कर उचक पड़ता है। पहले डर फिर झेंप और अब गुस्से से)
सजीवन:- सार डेरबाय दिहिस तै, देई एक चैथेरा, चुप्प चाप बैइठ नहीं त भाग येनठें से।
बब्बा:- न गरियाबा दादू आफत के मारा है बपुरा...
अधेड़:- का अपना येही जानित हैन अपने आस पास के तो न होय
बब्बा:- हाँ दादू इया बड़ा भला मनई रहा। पढ़ा लिखा है, घर दुआर सब रहा पय सब झोंकि दिहिस पृथबी बचाबै के लाने। (पागल दुःखी हो जाता है। सोचनीय आँसू भरा चेहरा)
(फ्लैश बैक)
एक युवक दौड़ता हुआ जा रहा है। कई व्यक्ति पेंड़ काट रहे हैं। कटे पेंड़ों के ठूँठ, गिरे कटे पेंड़ पड़े हैं। युवक लकड़हारो के बीच पहुँच जाता है, उनमें बात-चीत हो रही है कि अचानक धक्का-मुक्की शुरू हो कर मारपीट होने लगती है। युवक लहुलुहान पड़ा है, बंदर चीख रहें हैं मानो इस अमानवीय हरकत पर अपना विरोध प्रगट कर रहे हैं। चिड़ियाँ निबल असहाय चिचियाती हुई उड़ रही हैं। (दृश्य धुंधला होने लगता है और दूसरा दृश्य सामने आता है) हवेली के बरामदे में एक धनी रोबदार व्यक्ति तख्त पर बैठा है और आस पास कुर्सियों में दो एक लोग और बैठे हैं, कुछ लकड़हारे , मजदूर खड़े हैं।
युवक:- अपना हजूर इया का कराय रहे हैंन। पहिले जंगल कटायेन औ अब तलाबन का नसाय रहे हैंन, पाप होई।
जमींदार:- कउन तलाब..अच्छा उआ बलसागर, ओही त हम बेंचि दिहे हैन उआ हमार कहाँ।
युवक:- नहीं ओही न बेंची, देखतै हैंन कि पानी के केतनी समस्या है। तलाब के मेड़न का
ओधसाय सब बराबर कैय देंहीं पानी रोके के एक इहौ साधन हेराय जई...
जमींदार:- हमरे थोड़ी दिक्कत रही..
युवकः- अपना का कौन दिक्कत, पैइसा का करब जब पानी होई त पैइसा...
जमींदार:- थोड़ा पढ़ि का लिहे कानून बतउते है हमरे पट्टे के आय हम चाहे जउन करी। एक ठे तलाब न रहे से का भुईं झुराय जई।
युवक:- बहुत फर्क पड़ि जात है। एक एक कर सब नसाय जइहीं गोरुआ, मनई, पंछी सबै का
बहुत दिक्कत होय जई। तलाब, बंधबा येनमें बारिष के पानी रुकत है, भुईं मा सोखरत है भूमी के जल स्तर बढ़त है।
जमींदार:- तोर स्तर खूब बढ़ि रहा है सम्हरि जा। (नाराजगी से)
युवक:- अपना बड़े हैन, समझदार हैंन। जंगल कटाय के खेत बनाइत हैंन, का करब जब पानिन न बरसी। जंगल नहीं पानी नहीं। पूरे पर्यावरण के संतुलन बिगड़ि जई।
जमींदारः-(कुछ चिंतित सा, सोचनीय अवस्था) अच्छा ठीक है तुम अब जा हिंयन से। (जमींदार उठ कर चला जाता है। पास बैठे हुये दरबारी को क्रोध आता है)
1 दरबारी:- भाग बे सारे, बहुत बताय लिहे, बहुत समझाय दिहे अब निकरिन जा इहाँ से।
2 दरबारी:- येहिन का समझाय देत जा कि समझाबै लाइक न रहि जाय। (मक्कारी से ) सब जुगाड़ नसबाय देई का (धीरे से पास बैठे पहले दरबारी से कहता है। कई लोग मिलकर बहुत मारते हैं। युवक अधमरा हो जाता है जिसे दो तीन लोग मिलकर उठा ले जाने लगते है। दृश्य धुंधला होते होते पूर्व स्थिती में आ जाता है। सभी वे लोग जो उसे पागल, गंदा समझ रहे थे दुःख व दया से पागल की तरफ देखने लगते हैं। औरतें चि.चि.चि. की ध्वनि करने लगतीं हैं तो पागल उन्हे घूरने लगता है। श्यामलाल का आगमन)
पागल:-चि चि चि..करतीं हैं (आवेश से) अरे दुःख मनाओ अपने आने वाले कल के लिये। हम तो पगलय हैंन तुम त समझिदार है, बचाय लेया अपने बंस का औ इया पृथबी का त जानी के तुम पाँचै अकिलमान है। बड़े हुसियार, सब झुर्रै झूर।
श्यामलाल:- अब समझि में आबा के इया का चाहत है।
सजीवन:- जना पगलय के समझाये से समझि में आबा, ओइसय इहौ पगलाय बाला है। काज नहीं होय त डाला मोटर से पानी लाबै के चक्कर मा पड़ा है, काज त होय जाये।
(सब हँसते हैं, श्यामलाल भुनभुनाता है।)
बब्बा:- ना बेटबा हँसि के ना टारा, इया ठीकै कहत है।
श्यामलाल:- सजीबन तैं हमरै पीछे काहे पड़े है।(कुछ नाराजगी से)
सजीवन:- त कहाँ परी बताबा। (चिढ़ाता है)
श्यामलालः- मुरखै है, हम अबहूँ कहित हैन किसब कोऊ हड़ताल करी, ज्ञापन देई, सरकार चाहे जहाँ से पानी लाबै।
सजीवन:- हड़ताल करै से का पानी बरसै लागी औ ज्ञापन दे से का झल्ल से पानी भर जई औउर सबसे बड़ी बात, हाँ तोर काज होय जई। (हँसता है और सब हँस देते हैं।)
श्यामलाल:-(आवेश में,उठकर सजीवन का गला पकड़ लेता है दोनो लड़ने लगते हैं) रहिजा बु... के तोही तो..
अधेड़:- ऐ रुका रुका लड़त न जा। सजीबन तुम चुप्पचाप बैइठा। पानी के समिस्सा आजहैइयै है, आगेउ परेशानी बढ़बै करी येसे ध्यान दई के सुना। ठीक है अब कें पें न करत जया। (सब शान्त हो कर बैठ जाते हैं)
बब्बा:- सब जानत हैं कि इया दिक्कत धीरे धीरे सबै जागा होय रही है।
सम्मलित स्वर:-हाँ हाँ य तो है।
पागल:- काहे घ् सब झुर्रै झूर। ( सब चैंक कर पागल की तरफ देखते हैं, क्योंकि वह खुशी से चिल्लाकर बोला। सन्नाटा)...
श्यामलाल:- सरकार ध्यान नहीं देय, सरपंच का चाही कि बेबस्था करै
सजीवन:- दादा भाई तोरे हाँथ जोरित हैंन, गोड़ कहाँ है तुम्हार, तुम चुप रहा। भगमान नाराज हैं, नहीं तो इया दुरदसा होत..(सब की तरफ दैखता है) हैं के नहीं।
बब्बा:- न..न.. हम, अपना सबै जिम्मेदार हैंन।
अधेड़:- येतना तो समझि में आबत है के अब पहिले कस पानी नहीं बरसै, उआ मेर चैमासे सामन भादौ केर झरियार नहीं होय। कहै जात है कि ‘बिना मघा के बरसे भुईं औ महतारी के परसे बेटबा नहीं अघाय’।
बब्बा:- देखी दादू , हम सब लोग इया धरती माता से अब तक खूब लिहेन पय दिहेन का। इया मनुस बढ़त गा। काटि काटि जंगल पहार सब जागा हम काबिज होय गैन अब भुईं कम परै लाघी त हबा मा कबजा करै केर तैयारी है, इया नहीं कि जनसंख्या सम्हार लीन जाय। पय नहीं लड़ै लागेन दऊ से..हाँ इया सब जेही पढ़े लिखे प्रकृति कहत हैं इहै भगमान आय येहिन से हमार जीबन है औ येहिन का हम नसाय रहे हैन। सजीबन ठीकै कहत है, भगमान नाराज काहे न होंय।
सजीवन:- मुर्गा बोकरा चढ़येन, मानस, यज्ञ सब करायेन। पूजा करतै रहित हैन।
(यह बताने के लिये प्रकृति विनाश की भरपाई की है। पर्यावरण संरक्षण का प्रयास किया है)
बब्बा:- लाउड स्पीकर लगाय रात दिन हल्ला मचाय के, मुर्गा बोकरा कटाय से भगमान औ धरती के पूजा नहीं होय, जेमा सबके कल्यान हो उआ काम पूजा आय।
पागल:- बुढ़ऊ डोकरा जिन्दाबाद (सब की तरफ खुश हो कर देखता है कोई कुछ नहीं बोलता) जिन्दाबाद जिन्दाबाद।
हीरालाल:- इया कइसन करत है
श्याम:- समिस्या पानी के है अउर इन सब से का मतलब।
अधेड़:- हमरे समझि मा आबत है, आगे तो सुनत जा।
बब्बा:- हाँ.. त का कहत रहेन (सोचता है) देखी दोस हमार है। पानी निता पहले बादलन का समेटा जाय। भागीरथी बनी, बादलन के एक एक बूंद समेट लेई, सहेज लेई।
तेरसी:- पानी के बूंद बादल बदरी से? (सब लोग खुसुर पुसुर करने लगतें है)
हीरालाल:- (डाँटते हुए) ऐ लड़िकौ चुप्पे रहा, भौजी थोड़ा सुनत जा, कैइसन का करै का
है खुलासा बताई।
अधेड़ः- सबते पहिले पानी इस्तेमाल करै केर तरीका सुधारा जाय।
बब्बा:- हाँ, फेर घर गाँव मा हरियाली लाबा। (सभी एक साथ:- हरियाली)
बब्बा:- हमरे लड़कइन केर सुधि है, हियन डोंगरी मा बिकट जंगल रहा मेंड़उरे मा, खरिहानन मा, आमा, नीम, पीपर जामुन, बाँस रहें, सब रसे रसे हेराय गें।
अधेड़:- हाँ कुछ कुछ हमहूँ का सुधि है, खूब बिरबा रहें पय अब होइगा गुलमेंहदी औ गाजरघास। न छिउला, न महुआ, चार तो बिलाय गा। अंवरा आमा इक्का दुक्का हैं बस।
बब्बा:- जब हरियाली रही तब न येतनी बेरामी रही औ कुआँ तलाब लबलबान रहत रहें। सुद्ध हबा, फल फूल..। बड़ा अच्छा रहा। (खो सा जाता है) अउ हम का किहेन..नुकसान बस।
पागल:- हवा शुद्ध हवा अब सब झुर्रै झूर।
बब्बा:- खूब इस्तेमाल किहेन हम सब पय आबै बाली पीढ़ी के लाने का किहेन। सबके मौउत केर इंतिजाम।
अधेड़:- सही मा पेड़ त बीमा होयगें। खुद फायदे मा लड़िकौ नाती मजे मा।
हीरालाल:-पहिले जंगल नसायेन फेर आमा जामुन नीम तापेन। लगायेन केतने?
बुद्धा:- हमार त नसाइन गा भाई, अब आगे के सुधि लीन जाय। पेंड़ लगाये जाँय।
पागल:- रूपिया, हबा पानी न देई, देखा देखा सब झुर्रै झूर।
बब्बा:- एक बाति अउर, जौन बंधबा फुटताल हैं, सलगा पानी साथै उपजाउ माटी नरई नरबन मा बहि जात है ओहू केर प्रबंध करै का पड़ी। जहाँ भर पानी रोका जाय सकत है, रोका जाय औ बरसा केर पानी अधिक से अधिक भुईं मा सोखाबा जाय।
श्याम:-एक बेर सरकार के तरफ से कंटूर खोदाये गें रहें पय सब पटि गें।
बब्बा:- पुरिखन के बंधाये बंधबा, जहाँ चैमासे के पानी समेटे भुईं मा सोखामै उआ पानी आय मिलै कुअन मा। कुआँ बरहौं महीना लबलबान रहत रहें। मनई चार हाँथ के जमरी से निस्तार करत रहा।
महावीर:- अब त गाड़ी भर रसरी लागथी।
फूलमती:- अब तो पानिन नहीं बरसै, बंधबा कहाँ से भरैं पाबै।
तेरसी:- औ कबहूँ बरसतौ हय तो बंधबन के मेड़ जउन ओधसाय दीनगें हैं, उनमा खेती करय लागे हैं, पानी कहाँ भरै, सब बहि जात है।
हीरालाल:- सब सुधारा जाय। पानी केर सोख्ता सबते जरूरी हैं।
श्याम:- का य सब होय सकी
सजीवन:- तोसे कुछू न हौई।
तेरसी:- अबहूँ समय है, चेत लेया नहीं तो काजौ न होई, रड़ऊ कहइहा(हँसती है)
बब्बा:- बहुत जरूरी है सब जने पानी के सोख्ता जरूर बनामै।
श्याम:- अगर पानी भरा रही तो मच्छर बिमारी इया तो बढ़ि जात है।
हीरालाल:- एक खास मछरी होथी ओही डारा जई, उआ मच्छर के लारवन(लार्वा) का खाय लेथी। मच्छरन के चिन्ता न करा, ओखर इंतिजाम होय जई ।
महावीर:- उआ कहाँ मिली?
हीरालाल:- अरे सरकार से येमा मदद लेब, जाँगर हमार सहारा सरकार के।
बुद्धा:- सब मिल जई। पहिले जौउन करै का है उआ कीन जाय। (सब लोगों में काफी उत्साह ह,ै औरत मर्द सभी ने कमर कस लिया है। यह हमारी समस्या है इसका निराकरण हम ही करेंगे)
श्याम:- जब सब जागा पेंड़ लगि जइहीं त खेती कहाँ होई, जन बढ़ि रहे हैं ऊँ कहाँ जइहीं।
अधेड़:- इहै तो सब कहत हैं, ‘हम दो हमारे दो’। जन ‘कंटोल’;ब्वदजतवसद्ध होय जाँय काहे ते कि जमीन त न बाढ़ी।
बब्बा:- जंगल जरूरी है। दुई हाँथ के चइला के लाने, एक ठे थुनिया के लाने पूर बिरबा
अधेड़:- आबा सरपंच तुम्हारै कमी रही।
सरपंच:- हाँ पता मिला येसे सीधे चले आयेन।
अधेड़:- कहूँ गय रहे का?
सरपंच:- हाँ, सी ओ साहेब के लघे गयन तै। एक हैंड पम्प मंजूर होयगा है।
सजीवन:-चल सेमलाल इया खबर हरबी अपने होबै बाले ससुरार मा पहुँचाबै केर प्रबंध करा, कोऊ ताके है। है कि नहीं।
बब्बा:- दादू सरपंच, ट्यूबवेल कराये से का समिस्सा केर निदान होय जई?
तेरसी:- हाँ बाबा बहुतै दिक्कत है पानी केर। कम से कम कोऊ पिआसा दुआरे से लौउटाबै का न परी। (सरपंच आश्चर्य में है कि गाँव में इससे बड़ी और क्या सुविधा हो सकती है। उसके हिसाब से सब खुशी से झूम उठेंगे, वैसे इस गाँव के लिये है भी बड़ी बात)
पागल:- आराम हराम है। मरोगे सबै मरोगे, सब झुर्रै झूर। (सरपंच अचंभित है)
बब्बा:- बाति अइसन आय कि मसीन से दस पोरसा, पचास पोरसा खेदाय दीन जई। हर साल गहिरे अउर गहिरे कहाँ तक, अइसन करत पूर भुईं छेदि डारब, फेर..का होइ?
फूलमती:- नहीं ठीक कहित हैन अपना। सरपंच पूर बात जानै नहीं। अबै एक ठे हैंडपम्प लगि जाये, हम लोग मेहनत करब न, पानी ऊपर अई।
सरपंच:- आखिर हमहूँ त जानी के का बाति आय।

रतिया:- हमरे हिसाब में पेंड़ लगाउब सबते जरूरी है अपने मइके औ आस पास सबै जागा इया बात फैलाबा जाय। पूरी दुनिया के लोग लगि जइहीं तो आजै झंझट से बरी।


सेमकली:- सही आय, पहिले पानी बरसाबै केर इंतिजाम होय फेर सोख्ता बनै।
हीरालाल:- बरसात के पहिले सोख्ता बनी, बरसात में पेंड़ लगहीं।
सरपंच:- आखिर हमहूँ त जानी का बात आय, कौन योजना पास भय है?
अधेड़:- सब बताउब पय पहिले इया बताबा तुम साथ मा है कि नहीं।
श्याम:- न सरपंच भाई रोजगार गारंटी से मदद न मिल जइ।

फूलमती:-सुना सरपंच अब गावँ मा उहै काम होई जेसे परियाबरन सुरक्षित रहै, समझे।

रपंच:- ह लेया मजिसटेट फैसला दई दिहिन, हओ भौउजी जो आज्ञा (हाँथ जोड़ सिर झुकाता है) अउर परियाबरन नहीं पर्यावरण, ग्राम सभा में पास करी, जउने मा सब केर भलाई हो उहै काम होई। जल धारा कपिल धारा...
हीरालाल:- योजना, स्कीम अपना जानी। हमहीं तो बस पसीना बहाबै केर जागा बताई।
अधेड़:- हमरे पंचेन के भाग से बाबा हियन पधारै हैं। सब कोऊ जिऊ जान से लगि जात जा , अब आपन जंगल, हबा पानी माने कि आपन जीबन बचाबै का है।
सरपंच:- एहिन से सयनबे कहत रहें कि ‘सयानन का झपलईया मा बंेड़िके बरातै लई जात रहें।’ धन्नि बाबा धन्नि हैंन।
बब्बा:- अरे नहीं दादू, धन्नि हैंन अपना पाचैं। अइसन सबै गाँव बाले सोचि लेंय तो जौन आफत सुरसा के नाई मुँह फारै सबका लीलै खितिर खड़ी है, नस्ट होय जई।
पागल:- (नाचने लगता है) दुख भरे दिन बीते रे भैइया, अब सुख पायो रे (अचानक चुप हो तर्जनी सबकी तरफ तान कर) किरिया कय लेत जा। ( सब खड़े होने लगते हैं)
अधेड़ः- रहिजा रहिजा, ऐ रे..तेरसी रतिया हिंयन आउ सेमकली कुछ गान तान होइ जाय।
जा हो कोऊ दउड़ि के बाजी बाजा लय आबा।
(सब बैठने लगते हैं। औरतें तैं रे. तैं करती शरमाती एक दूसरे को धक्का देती हैं के बाद)
महिला कोरस:- आबा सिब कोऊ मिल के बरसा के पानी का सहेज लेई ना।
बहा जाये पाऽनी आबा मेंड़ बनाई , बूंद बूंद जोरि के समुंद बनाई ,
सब कोऊ मिलके बिरबा लगाई । निपनियाँ गाम का पानीदार बनाई ना।
गाना खत्म होते होते गाँव के मवेशियों को लेकर चरवाहे बाँसुरी बजाते हुये वापस लौट रहे हैं। पूरे आसमान में त्याग उत्साह का रंग फैलने लगा है।
पागल:- सबेरे के भुलान साँझ घर लौउटि आमै तो उनहीं भुलान नहीं कहे का होय। समझे (दर्शकों की तरफ इशारा) सब समझि ग हैं।
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( अन्तिम)
गाँव के लोग ष्ॅंजमत ींतअमेजपदहष् के लिये ‘सोक पिट’ बनाने, तालाब एवं बाँध सुधारने के काम से निकल पड़ते हैं। तालाब बन रहे हैं, बाँध बँाधे जा रहे हैं। वृक्षारोपण हो रहा है, लगता है पूरी धरती के लोग लगे हैं। पागल खुशी से नाच रहा है।
गाँव में लोहार की मड़ई (दुकान) लगी है। लकड़हारे टंगिया कुल्हाड़ी लेकर आयें हैं।
लकड़हारा:- ऐ तुलबुल, लेया कुदारी बनाय देया।
लोहार:- टंगबा केर कुदारी बनबइहा। (काम में लगा है)
लकड़हारा:- हाँ रे अब बिरबा न कटिहें, बलुक लगाये जइहीं
लोहार:- चला तुमहीं तो पुन्न मिलबै करी साथै हमरौ पाप कटिहीं।
लकड़हाराः- खाना बनबै भरे का तो ओइसै झूर लकडी़ मिल जाथी फेर येखर का जरूरत है।
लकड़हारा 2:- हबा, बिरबा, पानी भगमान आहीे , नाराज होईगें हैं। कुछ तो पाप कटै। बनाय दे भाई इया हतियारा का कूटि कूटि के। पुन्न होई।
लोहार खुशी खुशी काम करने लगता है।
दृश्य परिवर्तन होता है। जमींदार पागल के पास आते हैं।
जमींदार:- (हाँथ जोड़ कर) हम बहकाबै मा आय गै रहेन, माफ कई दया। हमार जेतने तलाब हैं सब तुम्हार आहीं, उनखा बनबाय दीन जई। आपन गलती समझि मा आय गै है।
अधेड़:- जिऊ चाही तो रहें जंगल औ पानी, इनकर करैं संरक्षन अउर संवर्धन।
भीड़ काम में लगी है। वृद्ध की आकृति उभरती है, धीरे धीरे धुंधली होती हुई बादल बन जाती है। पागल आकाश की तरफ देखता रहता है, आँसू बह रहे हैं।
सजीवन:- न भाई, बाबा तो नकसा बदल दिहिन। उनखर नाम का है?
हीरालाल व अधेड़:- पानीदार
कई लोग एक साथ:- ऐं ! का?
पागल:- पानीदार ( चिल्लाकर ) अउर का, पानीदार।
मौसम बदलता है। श्यामलाल की शादी हो जाती है। आज अच्छी बारिष हो रही है। श्यामलाल की नई दुलहन बड़े ध्यान से बारिष होते देख रही है। खपरैल से पानी की बूँद टपकती है, टप्प..टप्प। दुलहन मुस्कुराती हुई उठकर अंजुली में सहेज लेती है। आकाश में बादल सघन होते हैं जो धीरे धीरे एक चक्र में बदल जाता है । चक्र के मध्य से एक प्रश्नचिन्ह उभर कर सामने आता है।
क्या आप ब्रह्मा की अमोल धरोहर इस सृष्टि को नष्ट होते देखना चाहतें हैं ?
क्या आप पानी के लिये तीसरे विश्व युद्ध में जाना चाहतें हैं ?
अगर नहीं तो आइये हम पानी की एक एक बूँद सहेज लें।
सबके पास बल है, बुद्धि है, भावनायें हैं, प्रयास करें हम होंगे कामयाब।
-0- यहीं से शुरुआत करें -0-