K.Sudheer Ranjan

K.Sudheer Ranjan

Tuesday, July 12, 2011

अतिथि सत्कार

आज मेरे बछपन के अभिन्न मित्र को आना है। खुश होना था पर इस बात की चिन्ता है कि उसकी आर्थिक स्थिती बहुत अच्छी नहीं है, ..नहीं उससे मुझे कुछ भी लेना देना नहीं है पर....।

पिछले महीने एक दिन मेरे घर पर एक मित्र का आगमन हुआ। मैने सभी से उसका परिचय कराया परिवार के सभी जन खुश हुये, काफी बातचीत हुई। पत्नी के विशेष आग्रह पर मित्र खाने पर रुक गया। अपने-अपने सुख दुख की बातें हुईं। मित्र के बारे में पत्नी को यह मालूम था कि वह काफी सम्पन्न है और मेरी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। पत्नी ने मुझसे कह रखा था कि उससे कुछ मदद के लिये बात करना। खाने के टेबल पर तैयारी होने लगी, पानी, सलाद, अचार इत्यादी। शायद ‘स्वीट डिश’ के लिये कुछ नहीं था। पत्नी बच्चे से ‘बेटा जाओ जल्दी से मिठाई...नहीं ऐसा करो कि कोई अच्छी वाली आइसक्रीम ले आओ’। मझे भी अच्छा लगा कि पत्नी अतिथि सत्कार में रुचि ले रही है। हम ‘डायनिंग टेबल पर आ बैठे। खाना खाते हुये बातें होने लगी, मित्र ने बताया कि इस समय बह अत्यधिक परेशान है व्यवसाय में लगातार घाटा होने की वजह से और साथ ही बैंक आदी के कर्जों ने उसे बिलकुल दिवालिया बना दिया है। मुझे दुख हुआ कि आमदनी तो बढ़ नही रही महंगाई बढ़ती जारही है जिससे हम मध्यम वर्गों को अपने अस्तित्व के लिये काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। मौजूदा सरकार जनता पर टैक्स का भार बढ़ाती जा रही है इस बिना पर कि फलां फलां पर घाटा उठाना पड़ रहा है। सरकार को लाभ हो ओर जनता को परेशानी ये बात मेरी समझ से बाहर है। खैर .... लगा कि चलो हममें अन्तर नहीं है। हम लोग खाना लगभग खा ही चुके थे। मै अब इंतजार कर रहा था कि आइसक्रीम परोसी जायेगी तभी पत्नी की हल्की सी आवाज आई ‘रहने दो खाना खाने के जुगाड़ में आया है।’ हम होंगे कामयाब।